
बॉलीवुड और भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में कई बार बड़े बजट और बड़े सितारों के साथ ऐसी फिल्में बनीं जो बॉक्स ऑफिस पर इतिहास रचने के लिए तैयार थीं, लेकिन असफल रहीं। 1991 में रिलीज हुई फिल्म 'शांति क्रांति' भी ऐसी ही एक फिल्म थी, जो अपने समय की सबसे महंगी और सबसे भव्य फिल्मों में से एक थी। लेकिन भारी भरकम बजट और तगड़े स्टारकास्ट के बावजूद यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिर गई।
10 करोड़ का बजट और चार भाषाओं में शूटिंग
‘शांति क्रांति’ को वी. रविचंद्रन ने लिखा, डायरेक्ट और प्रोड्यूस किया था। इस फिल्म की खास बात यह थी कि इसे चार भाषाओं – कन्नड़, तमिल, तेलुगु और हिंदी में बनाया गया था। यह उस दौर में एक बड़ा प्रयोग था, जब पैन-इंडिया का कॉन्सेप्ट इतना आम नहीं था।
कन्नड़ वर्जन में वी. रविचंद्रन खुद लीड रोल में थे।
तेलुगु वर्जन में नागार्जुन को मुख्य भूमिका मिली।
तमिल और हिंदी वर्जन में रजनीकांत लीड रोल में नजर आए।
इनके साथ जूही चावला, खुशबू और अनंत नाग जैसे मजबूत कलाकार भी फिल्म का हिस्सा थे।
भव्यता की हदें पार, लेकिन कहानी में दम नहीं
इस फिल्म के निर्माण में वी. रविचंद्रन ने अपनी जिंदगी भर की कमाई लगा दी थी।
क्लाइमेक्स सीन के लिए 50 एकड़ जमीन किराए पर ली गई।
विशाल सेट्स तैयार किए गए और शूटिंग में दो साल का समय लग गया।
फिल्म की शूटिंग 1988 में शुरू हुई और 1990 के अंत तक चली।
हर फ्रेम में पैसे की चमक दिख रही थी लेकिन कहानी और स्क्रीनप्ले दर्शकों को नहीं भाया। तकनीकी स्तर पर फिल्म आगे थी लेकिन इमोशनल कनेक्ट और स्टोरीटेलिंग में कमजोरी के चलते यह लोगों के दिलों में जगह नहीं बना सकी।
रिलीज और जबरदस्त फ्लॉप का तमगा
सितंबर 1991 में रिलीज हुई 'शांति क्रांति', जिसने रिलीज से पहले ही काफी चर्चा बटोर ली थी। लेकिन यह फिल्म किसी भी भाषा में हिट नहीं हो पाई।
ओपनिंग बेहद कमजोर रही।
पब्लिक और क्रिटिक्स दोनों ने इसे नकार दिया।
फिल्म का कुल कलेक्शन सिर्फ ₹8 करोड़ रहा, जबकि बजट ₹10 करोड़ था।
उस दौर में ₹10 करोड़ का बजट ‘अजूबा’ फिल्म के ₹8 करोड़ को भी पार कर चुका था, जो एक रिकॉर्ड था।
रविचंद्रन की हार, लेकिन आत्मसमर्पण नहीं
इस फिल्म की असफलता ने वी. रविचंद्रन को दिवालिया कर दिया। उनका करियर खतरे में आ गया, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। बाद में उन्होंने अपने आप को चरित्र भूमिकाओं में ढाला और फिर से दर्शकों के दिलों में जगह बनाई।
उनकी यह फिल्म आज भी इंडस्ट्री में एक उदाहरण के रूप में याद की जाती है कि कैसे भव्यता और स्टारपावर हमेशा सफलता की गारंटी नहीं होती।
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