
चंद्र ग्रहण (Lunar Eclipse) एक महत्वपूर्ण खगोलीय घटना है, जो तब घटित होती है जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक सीध में आ जाते हैं और पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ती है। साल 2025 का पहला चंद्र ग्रहण होली पर लगा था, और अब 7-8 सितंबर 2025 को साल का दूसरा पूर्ण चंद्र ग्रहण लगने वाला है। यह ग्रहण धार्मिक दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि यह पूर्णिमा तिथि पर होगा।
कब लगेगा साल का दूसरा चंद्र ग्रहण?
तारीख: 7-8 सितंबर 2025 (शनिवार-रविवार की रात)
समय: रात 9:57 बजे शुरू होकर 8 सितंबर की आधी रात 12:23 बजे तक
कुल अवधि: लगभग 2 घंटे 26 मिनट
यह पूर्ण चंद्र ग्रहण होगा, यानी चंद्रमा पूरी तरह पृथ्वी की छाया में रहेगा।
क्या भारत से दिखेगा चंद्र ग्रहण?
हां, यह चंद्र ग्रहण भारत से साफ तौर पर दिखाई देगा। इसके अलावा यह ग्रहण एशिया, यूरोप, अंटार्कटिका, ऑस्ट्रेलिया, अटलांटिक, हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के क्षेत्रों से भी देखा जा सकेगा। इसका मतलब है कि यह एक विस्तृत क्षेत्र में दृश्य ग्रहण होगा।
ब्लड मून: चंद्रमा का लाल रूप
यह ग्रहण पूर्ण चंद्र ग्रहण होने के कारण ब्लड मून का नज़ारा भी देखने को मिलेगा। जब चंद्रमा पूरी तरह से पृथ्वी की छाया में आ जाता है, तब वह लाल रंग का नजर आता है जिसे ब्लड मून कहा जाता है। यह दृश्य बेहद मनोहारी और रोमांचक होता है।
धार्मिक महत्व और पूर्णिमा पर ग्रहण
यह ग्रहण भाद्रपद माह की पूर्णिमा पर लगेगा, जो हिंदू धर्म में अत्यंत शुभ मानी जाती है। पूर्णिमा तिथि पर चंद्रमा पूर्ण रूप से दिखाई देता है और पूजा-पाठ के लिए यह दिन विशेष होता है। ऐसे में इसी दिन चंद्र ग्रहण का लगना इस घटना को और भी धार्मिक रूप से विशेष बनाता है।
क्या सूतक काल मान्य होगा?
हां, चूंकि यह ग्रहण भारत से दिखाई देगा, इसलिए इसका सूतक काल पूरी तरह मान्य होगा।
सूतक काल की शुरुआत: ग्रहण से 12 घंटे पहले यानी 7 सितंबर की सुबह से ही
सूतक काल की समाप्ति: ग्रहण के समाप्त होने के बाद
सूतक काल में क्या नहीं करना चाहिए:
खाना बनाना और खाना
धार्मिक ग्रंथों का पाठ
मंदिरों में पूजा
गर्भवती महिलाओं को विशेष सावधानी रखनी चाहिए
वरुथिनी एकादशी 2025: एक और धार्मिक पर्व
अप्रैल में पड़ने वाली वरुथिनी एकादशी भी भगवान विष्णु की पूजा का पावन दिन है। इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा विधि-विधान से की जाती है। यह एकादशी धार्मिक रूप से उतनी ही महत्वपूर्ण होती है जितनी की पूर्णिमा या ग्रहण।
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