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Times News Hindi,Digital Desk : हिंदू धर्म में विवाह एक पवित्र संस्कार माना जाता है जिसमें कई महत्वपूर्ण रस्में निभाई जाती हैं। इन्हीं रस्मों में से एक अत्यंत शुभ और महत्वपूर्ण रस्म 'सिंदूरदान' है। यह रस्म विवाह के दौरान कन्यादान की तरह ही महत्व रखती है। आइए विस्तार से जानते हैं कि सिंदूरदान का क्या अर्थ है और इसका महत्व क्यों इतना खास है।

सिंदूरदान क्या है?

सिंदूरदान का अर्थ है विवाह समारोह के दौरान दूल्हा द्वारा दुल्हन की मांग में सिंदूर भरना। यह क्षण विवाह का एक अत्यंत भावनात्मक और आध्यात्मिक पल होता है, जो विवाह संबंध की पवित्रता और स्थायित्व का प्रतीक है।

सिंदूरदान का आध्यात्मिक महत्व

हिंदू धर्म में सिंदूरदान को सौभाग्य, प्रेम और पति के लंबे जीवन का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि विवाहित महिलाएं यदि रोजाना मांग में सिंदूर भरती हैं तो इससे उनके पति की आयु लंबी होती है और वैवाहिक जीवन खुशहाल रहता है। जितना लंबा सिंदूर महिला अपनी मांग में लगाती है, उसे पति की लंबी आयु से जोड़कर देखा जाता है।

सिंदूर का लाल रंग प्रेम, शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक है। इसे लगाने से न केवल स्त्री की सुंदरता बढ़ती है, बल्कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यह महिलाओं की सुरक्षा का भी प्रतीक है। यह माना जाता है कि जो स्त्री नियमित रूप से सिंदूर लगाती है, उसकी रक्षा स्वयं माता सीता करती हैं।

सिंदूर लगाने का वैज्ञानिक आधार

जिस स्थान पर महिलाएं सिंदूर लगाती हैं, वह ब्रह्मरंध्र और अहिम नामक मर्मस्थल के ठीक ऊपर स्थित होता है। यह स्थान अत्यंत संवेदनशील होता है और माना जाता है कि सिंदूर लगाने से यह बिंदु सुरक्षित रहता है।

सिंदूरदान मंत्र और अर्थ

सिंदूरदान के समय एक विशेष मंत्र का उच्चारण किया जाता है:

'ॐ सुमंगलीरियं वधूरिमां समेत पश्यत। सौभाग्यमस्यै दत्त्वा याथास्तं विपरेतन।।'

अर्थ: विवाह मंडप में उपस्थित सभी लोग देखें कि मैं दुल्हन की मांग में सिंदूर भर रहा हूं, यह उसे सौभाग्यशाली और कल्याणकारी बनाए। इस मंत्र का उच्चारण वर-वधू दोनों के लिए शुभता और आशीर्वाद लेकर आता है।


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