कोलोरेक्टल कैंसर, जिसे कोलन कैंसर या मलाशय कैंसर भी कहा जाता है, दुनिया में सबसे आम कैंसर में से एक है। यह बड़ी आंत (कोलन) और मलाशय (रेक्टम) में विकसित होता है और वैश्विक स्तर पर यह तीसरा सबसे आम कैंसर है। हालांकि यह कैंसर इलाज योग्य है, लेकिन समस्या यह है कि अधिकांश मामलों में इसका निदान देरी से होता है।
भारत में यह कैंसर उतना आम नहीं है, लेकिन जिन मरीजों को इसका पता चलता है, उनमें से कई को यह कैंसर एडवांस स्टेज पर ही पता चलता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि लोग इसके शुरुआती लक्षणों को नजरअंदाज कर देते हैं या फिर इसे कोई और सामान्य बीमारी समझ लेते हैं।
कोलोरेक्टल कैंसर के शुरुआती लक्षण क्या हैं?
मल में खून आना – कोलोरेक्टल कैंसर का सबसे पहला और प्रमुख लक्षण है। लेकिन लोग इसे अक्सर बवासीर (पाइल्स) या अन्य पेट की समस्या समझकर नजरअंदाज कर देते हैं। अगर बार-बार मल में खून आ रहा है, तो डॉक्टर से जांच जरूर करवानी चाहिए।
मल त्याग की आदतों में बदलाव –
कभी कब्ज, तो कभी पतला मल आना
मल त्याग के दौरान दर्द महसूस होना
शौच के बाद भी पूरा पेट साफ न होने का एहसास
बार-बार शौच जाने की इच्छा होना
वजन कम होना और कमजोरी महसूस होना – बिना किसी स्पष्ट कारण के अचानक वजन घटना या हर समय थकान महसूस करना भी इस कैंसर का संकेत हो सकता है।
पेट में लगातार दर्द या ऐंठन – पेट में बार-बार दर्द होना, सूजन महसूस होना या गैस से जुड़ी समस्याएं लंबे समय तक बनी रहना।
कोलोरेक्टल कैंसर का निदान कैसे किया जाता है?
जैसा कि अन्य कैंसरों में होता है, अगर कोलोरेक्टल कैंसर की जल्द पहचान कर ली जाए, तो इसका इलाज संभव है।
1. फेकल ऑकल्ट ब्लड टेस्ट (FOBT):
यह मल में खून की मौजूदगी की जांच करने के लिए किया जाता है।
यह एक शुरुआती जांच होती है, जिससे कैंसर के संभावित लक्षणों का पता लगाया जा सकता है।
2. कोलोनोस्कोपी:
इसमें डॉक्टर कैमरे वाली पतली ट्यूब के जरिए बड़ी आंत और मलाशय की जांच करते हैं।
अगर कोई असामान्य वृद्धि या गांठ पाई जाती है, तो बायोप्सी (ऊतक का सैंपल) लेकर कैंसर की पुष्टि की जाती है।
3. आनुवंशिक परामर्श और नियमित स्क्रीनिंग:
अगर परिवार में किसी को कोलन कैंसर रहा हो, तो यह बीमारी आनुवंशिक हो सकती है।
40 वर्ष की उम्र के बाद नियमित जांच कराना जरूरी है, खासकर अगर किसी को यह बीमारी परिवार में पहले हुई हो।
कोलोरेक्टल कैंसर का इलाज कैसे किया जाता है?
अगर इस कैंसर का जल्दी पता चल जाए, तो इलाज आसान और प्रभावी होता है।
1. सर्जरी (शल्य चिकित्सा) विकल्प:
रोबोटिक सर्जरी और लैप्रोस्कोपी:
ये कम इनवेसिव (छोटे चीरे वाली) सर्जरी होती हैं, जिससे मरीज जल्दी ठीक हो जाता है।
शुरुआती स्टेज के कैंसर में यह इलाज बेहद कारगर है।
ओपन सर्जरी:
अगर कैंसर ज्यादा फैल गया हो, तो डॉक्टर ओपन सर्जरी का विकल्प चुन सकते हैं।
इस प्रक्रिया में प्रभावित हिस्से को हटाया जाता है ताकि कैंसर आगे न फैले।
2. कीमोथेरेपी और रेडिएशन थेरेपी:
अगर कैंसर ज्यादा बढ़ गया हो, तो कीमोथेरेपी और रेडिएशन थेरेपी दी जाती है।
यह कैंसर सेल्स को खत्म करने में मदद करती है और सर्जरी के बाद इसे दोबारा बनने से रोकती है।
क्या कोलोरेक्टल कैंसर को रोका जा सकता है?
जी हां! अगर कुछ आदतों को अपनाया जाए, तो इस कैंसर के जोखिम को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
फाइबर युक्त भोजन खाएं – हरी सब्जियां, फल, साबुत अनाज का सेवन करें।
जंक फूड और प्रोसेस्ड मीट से बचें – रेड मीट और प्रोसेस्ड फूड से कैंसर का खतरा बढ़ सकता है।
धूम्रपान और शराब से बचें – ये आदतें कैंसर के खतरे को कई गुना बढ़ा सकती हैं।
नियमित व्यायाम करें – रोजाना कम से कम 30 मिनट की शारीरिक गतिविधि जरूरी है।
वजन को नियंत्रित रखें – मोटापा कैंसर के जोखिम को बढ़ा सकता है, इसलिए हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाएं।