
Astro tips : हिंदू धर्म में घर की बेटी को मां लक्ष्मी का रूप कहा गया है. ऐसे में बेटियों के लिए धर्म-शास्त्रों में कुछ बातें बताई गई हैं.
1. बेटियों को देवी का स्वरूप माना गया है
सनातन धर्म में नारी को देवी का रूप माना गया है, और कम उम्र की कन्याओं को विशेष रूप से मां दुर्गा का अवतार माना गया है। यही कारण है कि नवरात्रि जैसे पवित्र पर्व में कन्या पूजन का विशेष महत्व होता है। घर की बेटियां केवल संतान नहीं, बल्कि सौभाग्य और समृद्धि की प्रतीक होती हैं। उन्हें लक्ष्मी के रूप में पूजा जाता है। इसलिए परिवार में चाहे कोई भी सदस्य हो, उम्र में छोटा हो या बड़ा, बेटियों के प्रति आदर और सम्मान दिखाना बेहद आवश्यक माना गया है।
विवाह के समय जब कन्यादान होता है, तब बेटी के चरण पूजन की परंपरा भी निभाई जाती है। इसका अर्थ है कि बेटी में ईश्वर का वास है। अगर हम इसे गंभीरता से समझें, तो यह केवल परंपरा नहीं, बल्कि एक सामाजिक और आध्यात्मिक संदेश है कि बेटियों का स्थान सर्वोपरि है। इसलिए यह जरूरी है कि हम बेटियों से कभी अपने पैर न छुवाएं। उल्टे हमें उनके चरण छूकर आशीर्वाद लेना चाहिए, क्योंकि वे घर में देवी की उपस्थिति का संकेत हैं।
2. कभी ना करें बेटी का अपमान
बेटी चाहे छोटी हो या बड़ी, उसका सम्मान हर स्थिति में आवश्यक है। कई बार अनजाने में माता-पिता या परिवार के अन्य सदस्य बेटियों को डांट देते हैं, उनकी भावनाओं को आहत कर देते हैं या उनकी बातों को नजरअंदाज कर देते हैं। विशेष रूप से शादीशुदा बेटी जब अपने मायके आती है, तो उसे पूरा स्नेह और आदर देना चाहिए। यदि वह दुखी मन से लौटती है, तो ऐसा माना जाता है कि उस घर से बरकत भी चली जाती है।
बेटी का अपमान करना देवी लक्ष्मी का अपमान करने के समान है। एक बेटी घर की रौनक होती है। अगर उसे मायके में सम्मान नहीं मिला, तो वह दुख उसका नहीं, बल्कि पूरे घर का होता है। इसलिए चाहे बेटी छोटी हो और कुछ गलती करे, तो प्यार से समझाएं। लेकिन तिरस्कार या कठोरता से उसका मन न दुखाएं।
3. बेटियों से न करवाएं जूठे बर्तन और अनुचित काम
परिवार में कई बार यह देखा जाता है कि बेटियों से घर के काम करवाए जाते हैं, जैसे जूठे बर्तन धोना या अन्य कठिन कार्य जो उनके लिए उचित नहीं होते। यह केवल शारीरिक श्रम की बात नहीं, बल्कि मानसिक प्रभाव का भी विषय है। जब आप एक बेटी को ऐसे कार्यों में लगाते हैं जिन्हें करने से बचना चाहिए, तो यह न केवल अनुचित है, बल्कि उसका आत्मसम्मान भी आहत होता है।
बेटी भी घर का सम्मान होती है। उसे सेविका नहीं, देवी के रूप में देखा जाना चाहिए। अगर आप उससे केवल काम करवाने लगेंगे, और उसकी भावनाओं का ध्यान नहीं रखेंगे, तो यह घर के लिए अशुभ माना जाता है। इसलिए जरूरी है कि बेटियों को वो काम न सौंपें जो उनके लिए उचित न हों।
4. बेटी का हिस्सा उसे अवश्य दें और लिया गया उधार लौटाएं
समाज में एक पुरानी धारणा रही है कि बेटा ही वारिस होता है, लेकिन सनातन धर्म में यह स्पष्ट है कि बेटी को भी समान अधिकार मिलना चाहिए। अगर घर में संपत्ति है, तो बेटी को उसका हिस्सा अवश्य मिलना चाहिए। यह केवल कानूनी नहीं, धार्मिक दृष्टिकोण से भी सही है। बेटी को उसका अधिकार देना सौभाग्य को आमंत्रित करना है।
अगर कभी ऐसा हो कि माता-पिता को बेटी से पैसों की जरूरत पड़े और वे उससे उधार लें, तो यह आवश्यक है कि वह धन समय पर लौटा दिया जाए। क्योंकि यह केवल लेन-देन नहीं, बल्कि एक प्रकार का कर्ज होता है जो धार्मिक रूप से अगली पीढ़ी तक असर डाल सकता है। इसलिए बेटी से कोई भी सहायता लेने पर उसका सम्मान के साथ प्रत्यावर्तन भी जरूरी है।
5. बेटी के आंसू नहीं बहने चाहिए
घर की बेटी अगर रोती है, तो ऐसा माना जाता है कि घर की खुशियां भी उसके आंसुओं के साथ बह जाती हैं। खासकर शाम के समय उसे डांटना या अपमान करना बहुत ही अशुभ माना गया है। बेटियों की मुस्कान ही घर का सौभाग्य है। जब वे प्रसन्न रहती हैं, तो घर में सुख-शांति और सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है।
शुभ अवसरों पर बेटियों को तोहफे दें, उन्हें खास महसूस कराएं। यह न केवल उन्हें प्रसन्न करता है, बल्कि उनके माध्यम से घर में सौभाग्य और समृद्धि भी आती है। बेटी की खुशी में ही पूरे परिवार की खुशी छुपी होती है।
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