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Times News Hindi,Digital Desk : गणेश चतुर्थी हर महीने कृष्ण और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाई जाती है, जिसे विनायक या वरद चतुर्थी भी कहते हैं। मान्यता है कि इस दिन विधि-विधान से पूजा और व्रत करने से भगवान गणेश सभी प्रकार के दुख-दर्द और बाधाओं को दूर कर जीवन में सुख-समृद्धि प्रदान करते हैं। आइए जानते हैं, मई 2025 में वैशाख माह की शुक्ल पक्ष की गणेश चतुर्थी के शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, मंत्र और आरती के बारे में।

विनायक चतुर्थी का शुभ मुहूर्त (मई 2025)

पूजा का शुभ मुहूर्त: सुबह 10:59 बजे से 11:23 बजे तक

ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 04:14 से 04:57 बजे

अभिजित मुहूर्त: सुबह 11:52 से दोपहर 12:45 बजे

विजय मुहूर्त: दोपहर 02:31 से 03:24 बजे

गोधूलि मुहूर्त: शाम 06:55 से 07:17 बजे

अमृत काल: सुबह 06:16 से 07:44 बजे तक और सुबह 03:36 से मई 02 की सुबह 05:07 तक

रवि योग: सुबह 05:40 से दोपहर 02:21 तक

चौघड़िया मुहूर्त

शुभ (उत्तम): सुबह 05:40 से 07:20 तक

चर (सामान्य): सुबह 10:39 से दोपहर 12:18 तक

लाभ (उन्नति): दोपहर 12:18 से 01:58 तक

अमृत (सर्वोत्तम): दोपहर 01:58 से 03:37 तक

शुभ (उत्तम, वार वेला): शाम 05:17 से 06:56 तक

अमृत (सर्वोत्तम): शाम 06:56 से रात 08:17 तक

विनायक चतुर्थी पूजा विधि

पूजा से पहले स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।

पूजा स्थल साफ कर भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।

फूल, धूप, दीप, नैवेद्य और जल जैसी सामग्री तैयार रखें।

गणेश जी का आवाहन करें और जल से अभिषेक करें।

गणपति को फूल अर्पित करें।

धूप और दीप जलाकर भगवान गणेश की आरती करें।

नैवेद्य अर्पित करें और मंत्र जाप करें।

अंत में आरती करें और प्रसाद बांटें।

गणेश मंत्र

ॐ गं गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा

गजाननाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।

श्री वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटी समप्रभा निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व-कार्येशु सर्वदा।

ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्।

ॐ ऐं ह्वीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।

ॐ नमो गणपतये कुबेर येकद्रिको फट् स्वाहा।

ॐ ग्लौम गौरी पुत्र, वक्रतुंड, गणपति गुरु गणेश। ग्लौम गणपति, ऋद्धि पति, सिद्धि पति। करो दूर क्लेश।

इदं दुर्वादलं ऊं गं गणपतये नमः।

ॐ वक्रतुण्डैक दंष्ट्राय क्लीं ह्रीं श्रीं गं गणपते वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।

ॐ श्रीं गं सौभ्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं में वशमानय स्वाहा।

गणेश आरती

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥

एक दंत दयावंत, चार भुजा धारी।
माथे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी॥

पान चढ़े फल चढ़े, और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे, संत करें सेवा॥

अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया॥

‘सूर' श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा।
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी। कामना को पूर्ण करो, जाऊं बलिहारी॥


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