
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने संसद और सुप्रीम कोर्ट की शक्तियों को लेकर एक अहम और स्पष्ट बयान दिया है। उनका कहना है कि लोकतंत्र में सर्वोच्च संस्था संसद ही होती है, क्योंकि संसद में वही प्रतिनिधि बैठते हैं जिन्हें जनता चुनकर भेजती है। ऐसे में उनसे ऊपर कोई अन्य संस्था नहीं हो सकती। उन्होंने यह बात दिल्ली विश्वविद्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कही।
धनखड़ ने अपने वक्तव्य में स्पष्ट किया कि सांसद ही जनता के असली प्रतिनिधि हैं और लोकतंत्र की बुनियाद उन्हीं पर टिकी है। उन्होंने यह भी कहा कि संसद को सर्वोच्च इसलिए माना जाता है क्योंकि वही संविधान में संशोधन का अधिकार रखती है। इसका मतलब है कि संविधान कैसा होगा, उसमें क्या बदलाव होंगे, ये सब निर्णय संसद ही लेती है, न कि कोई और संस्था।
संविधान पर नियंत्रण का अधिकार केवल संसद को
कार्यक्रम में उपराष्ट्रपति ने यह भी कहा कि संवैधानिक पदों पर बैठे हर व्यक्ति की बात राष्ट्रहित से प्रेरित होती है। उन्होंने यह तर्क भी दिया कि संविधान की संरचना और उसमें बदलाव का अधिकार सिर्फ संसद को ही है, और इसे किसी और संस्था के अधीन नहीं रखा जा सकता। धनखड़ ने कहा कि संसद में बैठने वाले प्रतिनिधि ही जनता की आवाज़ होते हैं और वही संविधान के ‘अंतिम स्वामी’ माने जाने चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर सवाल
धनखड़ ने अपने भाषण में सुप्रीम कोर्ट के कुछ पुराने फैसलों की आलोचना भी की। उन्होंने 1967 के 'गोलकनाथ केस' और 1973 के 'केशवानंद भारती केस' का जिक्र करते हुए कहा कि इन दोनों मामलों में संविधान की प्रस्तावना को लेकर विरोधाभासी निर्णय दिए गए। एक फैसले में कहा गया कि प्रस्तावना संविधान का हिस्सा नहीं है, जबकि दूसरे में इसे संविधान का अभिन्न अंग बताया गया।
उन्होंने इस भ्रम पर सवाल उठाते हुए कहा कि संविधान के बारे में कोई संशय नहीं होना चाहिए – यह एक स्थायी दस्तावेज़ है और इसके संरक्षक संसद के चुने हुए प्रतिनिधि हैं।
आपातकाल के दौरान न्यायपालिका की भूमिका पर भी सवाल
धनखड़ ने 1975 में लगे आपातकाल का उल्लेख करते हुए कहा कि उस दौर को लोकतंत्र का सबसे अंधकारमय काल कहा जा सकता है। उन्होंने आरोप लगाया कि उस समय सुप्रीम कोर्ट ने नौ उच्च न्यायालयों के फैसलों को पलट दिया और मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया। उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि देश की सबसे बड़ी अदालत ने उन फैसलों को दरकिनार कर दिया जो आम नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करते थे।
अनुच्छेद 142 पर विवाद
धनखड़ की यह टिप्पणी ऐसे समय पर आई है जब अनुच्छेद 142 को लेकर विवाद गहराया हुआ है। यह अनुच्छेद सुप्रीम कोर्ट को पूरे देश में लागू होने वाले आदेश देने की शक्ति देता है ताकि किसी भी लंबित मामले में ‘पूर्ण न्याय’ किया जा सके। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति और राज्यपालों को राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर समय सीमा में निर्णय लेने का निर्देश दिया था। इसके बाद धनखड़ ने कहा कि अनुच्छेद 142 एक ऐसी शक्ति बन गया है जो लोकतांत्रिक संस्थाओं के लिए एक "परमाणु मिसाइल" की तरह इस्तेमाल हो रही है।
संविधान का असली मालिक कौन?
धनखड़ ने दो टूक कहा कि संविधान लोगों के लिए है और इसे किसी एक संस्था या वर्ग की संपत्ति नहीं समझा जाना चाहिए। उन्होंने साफ किया कि लोकतंत्र में किसी भी संवैधानिक संस्था की जवाबदेही बनी रहनी चाहिए और संविधान का अंतिम निर्णय वही लोग ले सकते हैं जिन्हें जनता ने चुना है।