
Vat Savitri vrat 2025 : हर साल ज्येष्ठ मास की अमावस्या को वट सावित्री व्रत बड़े श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है। यह व्रत विशेष रूप से विवाहित महिलाओं द्वारा किया जाता है, जो अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। इस दिन वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस व्रत को पूरी श्रद्धा से करने से न केवल पति की उम्र लंबी होती है, बल्कि संतान सुख और पारिवारिक समृद्धि भी प्राप्त होती है। वहीं, अविवाहित लड़कियां भी इस व्रत को करती हैं ताकि उन्हें योग्य वर की प्राप्ति हो सके।
वट सावित्री व्रत 2025: तिथि और शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। साल 2025 में यह तिथि 26 मई को दोपहर 12:11 बजे से शुरू होगी और अगले दिन 27 मई की सुबह 8:21 बजे तक रहेगी। उदया तिथि के अनुसार व्रत 26 मई को ही रखा जाएगा।
इस दिन का ब्रह्म मुहूर्त सुबह 4:03 बजे से 4:44 बजे तक रहेगा, जो पूजा-पाठ के लिए सबसे श्रेष्ठ समय माना जाता है। सूर्योदय सुबह 5:27 पर और सूर्यास्त शाम 7:11 बजे होगा।
शुभ मुहूर्त इस प्रकार रहेंगे:
विजय मुहूर्त: दोपहर 2:36 से 3:31 तक
गोधूलि मुहूर्त: शाम 7:16 से 7:36 तक
निशीथ मुहूर्त: रात 11:58 से 12:39 तक
अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 11:52 से 12:48 तक
इन सभी मुहूर्तों में पूजा करना विशेष फलदायी माना गया है।
वट सावित्री व्रत में आवश्यक पूजन सामग्री
व्रत के दिन पूजा के लिए कुछ विशेष सामग्री की आवश्यकता होती है, जिनका धार्मिक महत्व होता है। नीचे कुछ प्रमुख सामग्रियों की सूची दी गई है जो व्रत के दिन उपयोग में लाई जाती हैं:
देसी घी
भीगा हुआ काला चना
मौसमी फल (आम, अंगूर, खरबूजा आदि)
अक्षत (चावल)
धूपबत्ती और अगरबत्ती
बरगद के पेड़ की डाली
गंगाजल
मिट्टी का घड़ा
सुपारी और पान
सिंदूर और हल्दी
मिठाई (खासकर घर पर बनी हुई)
इन सभी वस्तुओं का अपना-अपना महत्व है। बरगद की डाली त्रिदेवों का प्रतीक मानी जाती है, गंगाजल से पवित्रता आती है और मौसमी फल भोग के रूप में चढ़ाए जाते हैं।
वट सावित्री व्रत की पूजा विधि
पूजन विधि बेहद सरल लेकिन पूरी श्रद्धा और नियमों के साथ की जानी चाहिए। सबसे पहले, व्रती महिला को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करना चाहिए और साफ या नई साड़ी पहननी चाहिए। इसके बाद पूर्ण श्रृंगार करें और व्रत का संकल्प लें।
फिर वट वृक्ष की सफाई करें और उसकी जड़ों में जल चढ़ाएं। पेड़ के चारों ओर सात बार कच्चा धागा लपेटें और सात परिक्रमा करें। पूजा करते समय धूप-दीप जलाएं, व्रत कथा पढ़ें और भोग अर्पित करें। अंत में आरती करें और जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र व धन का दान करें।
व्रत के दिन दिनभर उपवास रखने की परंपरा है। महिलाएं व्रत कथा के साथ दिन व्यतीत करती हैं और शाम को पूजा के बाद व्रत खोलती हैं।
वट सावित्री व्रत कथा: सावित्री और सत्यवान की अमर प्रेम गाथा
वट सावित्री व्रत की कथा अत्यंत प्रेरणादायक है। यह कहानी सावित्री और सत्यवान की है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, सावित्री एक धर्मपरायण और समर्पित पत्नी थीं। जब उनके पति सत्यवान के प्राण यमराज लेने आए, तो सावित्री ने उनका पीछा किया और अपने तप, भक्ति और बुद्धिमत्ता से यमराज को प्रसन्न कर लिया।
सावित्री ने यमराज से सत्यवान के प्राण वापस देने की प्रार्थना की। यमराज ने उसकी दृढ़ निष्ठा और प्रेम से प्रभावित होकर सत्यवान को जीवनदान दे दिया। यह घटना वट वृक्ष के नीचे घटी थी, इसलिए इस दिन वट वृक्ष की पूजा की जाती है।
यह व्रत स्त्रियों के अटूट प्रेम, समर्पण और तप की मिसाल है। माना जाता है कि इस व्रत से न केवल पति की आयु लंबी होती है, बल्कि पारिवारिक जीवन में सुख-शांति और समृद्धि भी आती है।
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