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Supreme Court : देशभर में सड़क हादसों की बढ़ती घटनाओं और पीड़ितों को समय पर राहत न मिलने पर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर चिंता जताई है। कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि पीड़ितों को न समय पर इलाज मिल रहा है, न ही मुआवजे की प्रक्रिया स्पष्ट है। इसके लिए कोर्ट ने राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा बोर्ड की निष्क्रियता को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि यह बोर्ड अब केवल कागजों तक सीमित रह गया है। हैरानी की बात यह है कि आज तक इसके अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति तक नहीं हो सकी है।

बोर्ड की सिफारिशें सिर्फ कागजों तक: सुप्रीम कोर्ट की तीखी टिप्पणी

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार इस दिशा में बेहद उदासीन रवैया अपना रही है। बोर्ड की सिफारिशें अगर हैं भी, तो उन्हें लागू कैसे किया जाएगा, इस पर कोई स्पष्ट प्रक्रिया अब तक सामने नहीं आई है। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने सफाई देते हुए कहा कि बोर्ड के पदों को भरने के लिए वर्ष 2019 में विज्ञापन दिया गया था। इन नियुक्तियों को कैबिनेट की नियुक्ति समिति की स्वीकृति चाहिए थी, लेकिन अब तक कोई उपयुक्त उम्मीदवार नहीं मिल पाया है।

हिट एंड रन मामलों पर सख्त रुख अपनाया सुप्रीम कोर्ट ने

हिट एंड रन दुर्घटनाओं पर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह कोई सामान्य मुद्दा नहीं है। कोर्ट ने कहा कि देश में सड़क हादसों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ रही है। दुर्घटना के बाद पीड़ितों को तुरंत सहायता नहीं मिलती, जिससे कई बार मौत तक हो जाती है। कुछ मामलों में तो पीड़ित घायल नहीं होते लेकिन वाहन में फंस जाते हैं और समय पर मदद नहीं मिलने से उनकी हालत गंभीर हो जाती है।

याचिकाकर्ता की मांग: त्वरित प्रतिक्रिया के लिए स्पष्ट प्रोटोकॉल बनाए जाएं

याचिकाकर्ता की तरफ से अदालत से यह मांग की गई कि सरकार ऐसे नोटिफिकेशन जारी करे जिससे दुर्घटना की स्थिति में त्वरित और प्रभावी प्रतिक्रिया सुनिश्चित हो सके। सरकारी वकील ने बताया कि याचिका में यह भी कहा गया है कि हिट एंड रन मामलों में जिम्मेदारी तय करने के लिए एक विशेष प्रोटोकॉल तैयार किया जाए। हालांकि उन्होंने यह भी जोड़ा कि यह प्रक्रिया बेहद जटिल है, क्योंकि कई मामलों में सटीक रूप से यह पता लगाना संभव नहीं होता कि दुर्घटना कैसे हुई।

मोटर वाहन अधिनियम के मामलों में उत्तर प्रदेश की विसंगति पर सवाल

सरकार के वकील ने यह भी बताया कि उत्तर प्रदेश में मोटर वाहन अधिनियम के अंतर्गत दर्ज मामलों को 10 वर्षों के बाद स्वतः समाप्त कर दिया जाता है। इससे एक विचित्र स्थिति उत्पन्न होती है—यदि कोई व्यक्ति जुर्माना भरता है तो उसका पैसा चला जाता है, लेकिन यदि वह कुछ नहीं करता तो अंततः मामला खत्म हो जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर आश्चर्य जताते हुए कहा कि यह न केवल कानून के साथ मज़ाक है, बल्कि इससे अपराधियों को बिना सज़ा के छूट जाने का रास्ता भी खुल जाता है।

उत्तर प्रदेश सरकार को जवाब दाखिल करने का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को इस विसंगति पर जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि राज्य में यदि कोई व्यक्ति मोटर वाहन अधिनियम के अंतर्गत अपराध करता है और जुर्माना नहीं भरता, तो उसका मामला कुछ वर्षों बाद अपने आप खत्म हो जाता है। यह स्थिति न्याय की मूल भावना के विपरीत है और इसे तत्काल सुधारा जाना चाहिए।

सड़क सुरक्षा के लिए राज्यों को 6 महीने में प्रोटोकॉल तैयार करने का आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने आगे निर्देश देते हुए कहा कि सभी राज्य सरकारें और केंद्र शासित प्रदेश छह महीनों के भीतर एक त्वरित प्रतिक्रिया प्रोटोकॉल तैयार करें, ताकि सड़क हादसों में घायल लोगों को तुरंत सहायता मिल सके। कोर्ट ने यह भी कहा कि केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर एकीकृत और व्यावहारिक योजना बनाएं जो जमीनी स्तर पर प्रभावी ढंग से लागू की जा सके।

NHAI को सभी राज्यों से साझा करने होंगे सुरक्षा दिशा-निर्देश

भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) ने अदालत को बताया कि उन्होंने हाईवे उपयोगकर्ताओं की सुरक्षा पर एक विस्तृत नोट तैयार किया है। सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि यह नोट सभी राज्यों के परिवहन सचिवों को भेजा जाए ताकि वे इसका अध्ययन कर अपने-अपने राज्यों में कार्य योजना बना सकें। इसके अलावा, NHAI को छह महीनों के भीतर एक शपथ-पत्र दाखिल करने का निर्देश दिया गया है, जिसमें यह जानकारी दी जाएगी कि उन्होंने इस प्रोटोकॉल को कैसे लागू किया है।

सड़क सुरक्षा को लेकर सरकारों की जिम्मेदारी तय

सुप्रीम कोर्ट ने अंत में यह स्पष्ट किया कि सड़क सुरक्षा अब केवल नीति पत्रों में नहीं रहनी चाहिए। इसे जमीन पर उतारने की जरूरत है। दुर्घटना के बाद हर सेकंड महत्वपूर्ण होता है। इसलिए राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को इस दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे। पीड़ितों को समय पर चिकित्सा सुविधा और मुआवजा मिलना उनका अधिकार है, न कि कोई कृपा।


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