
Times News Hindi,Digital Desk : सुप्रीम कोर्ट ने ओटीटी प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया पर बढ़ती अश्लील सामग्री को लेकर गहरी चिंता जताई है। कोर्ट ने इस समस्या से निपटने के लिए ठोस कानून की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है। मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि अश्लील कंटेंट को नियंत्रित करने की जिम्मेदारी कार्यपालिका और विधायिका की है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वह इस मुद्दे पर किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं करना चाहता, क्योंकि इससे कोर्ट पर कार्यपालिका और विधायिका के अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण के आरोप लगते रहे हैं।
केंद्र सरकार का पक्ष: केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि ओटीटी और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कंटेंट नियंत्रण के लिए कुछ नियम पहले से ही मौजूद हैं, जबकि नए नियमों पर विचार किया जा रहा है। मेहता ने बच्चों पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों को लेकर विशेष चिंता जताई। उन्होंने कहा कि प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध सामग्री इतनी आपत्तिजनक है कि दो व्यक्ति साथ बैठकर इसे नहीं देख सकते।
याचिकाकर्ता की मांग: पत्रकार उदय माहूरकर की ओर से दाखिल याचिका में मांग की गई है कि कोर्ट केंद्र सरकार को 'नेशनल कंटेंट कंट्रोल ऑथोरिटी' के गठन का निर्देश दे। यह प्राधिकरण ओटीटी और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रसारित होने वाली अश्लील सामग्री को नियंत्रित करने के लिए दिशानिर्देश तैयार करे।
सुप्रीम कोर्ट का नोटिस: मामले की गंभीरता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार समेत नेटफ्लिक्स, उल्लू डिजिटल, ऑल्ट बालाजी, ट्विटर, मेटा और गूगल जैसे प्रमुख प्लेटफॉर्मों को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने कहा है कि इस मामले में तत्काल ठोस कदम उठाए जाने की जरूरत है।
अदालत की टिप्पणी: जस्टिस गवई ने कहा कि कई अभिभावक अपने बच्चों को व्यस्त रखने के लिए मोबाइल फोन देते हैं, जिससे बच्चे आसानी से इस तरह की अश्लील सामग्री तक पहुँच जाते हैं। कोर्ट ने कहा कि इसे रोकने के लिए प्रभावी उपाय करना अत्यंत आवश्यक है, हालांकि यह कार्य सरकार और विधायिका के जिम्मे है। कोर्ट इस याचिका को गंभीरता से लेते हुए अगले सप्ताह फिर सुनवाई करेगा।