
Parshuram Jayanti 2025 : हर वर्ष की भांति इस बार भी भगवान परशुराम की जयंती बड़े ही हर्षोल्लास और भक्ति के साथ मनाई जाएगी। हिंदू धर्म में भगवान परशुराम को विष्णु जी का छठा अवतार माना गया है, जिनका जन्म अक्षय तृतीया के पावन दिन हुआ था।
परशुराम जयंती 2025 की तारीख
वैदिक पंचांग के अनुसार, वर्ष 2025 में वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 29 अप्रैल को शाम 5:32 बजे से आरंभ होकर 30 अप्रैल दोपहर 2:11 बजे तक रहेगी। चूंकि भगवान परशुराम का जन्म प्रदोष काल में हुआ था, इसलिए उनकी जयंती 29 अप्रैल को ही मनाई जाएगी। अक्षय तृतीया का पर्व 30 अप्रैल को होगा।
शुभ योग का विशेष संयोग
इस बार परशुराम जयंती पर सर्वार्थ सिद्धि योग और रवि योग का अत्यंत शुभ संयोग बन रहा है। ये योग धार्मिक कार्यों के लिए विशेष फलदायी माने जाते हैं। श्रद्धालु इस दिन सुबह और शाम, खासकर प्रदोष काल में, भगवान परशुराम की पूजा अर्चना कर सकते हैं।
पूजा विधि और महत्व
परशुराम जयंती के दिन श्रद्धालु व्रत रखते हैं और भगवान परशुराम की मूर्ति या चित्र की विधिवत पूजा करते हैं। इस दिन उनकी जन्म कथा का पाठ करना, हवन करना और जरूरतमंदों को दान देना अत्यंत शुभ माना जाता है। परशुराम जी ब्राह्मण और क्षत्रिय गुणों के प्रतीक माने जाते हैं, इसलिए उनकी पूजा से भक्तों को ज्ञान, शक्ति और न्याय की प्राप्ति होती है।
भगवान परशुराम की आरती
आरती श्री परशुराम जी की
शौर्य तेज बल-बुद्धि धाम की। रेणुकासुत जमदग्नि के नंदन। कौशलेश पूजित भृगु चंदन॥ अज अनंत प्रभु पूर्णकाम की। आरती कीजे श्री परशुराम की॥
नारायण अवतार सुहावन। प्रगट भए महि भार उतारन॥ क्रोध कुंज भव भय विराम की। आरती कीजे श्री परशुराम की॥
परशु चाप शर कर में राजे। ब्रह्मसूत्र गल माल विराजे॥ मंगलमय शुभ छबि ललाम की। आरती कीजे श्री परशुराम की॥
जननी प्रिय पितृ आज्ञाकारी। दुष्ट दलन संतन हितकारी॥ ज्ञान पुंज जग कृत प्रणाम की। आरती कीजे श्री परशुराम की॥
परशुराम वल्लभ यश गावे। श्रद्धायुत प्रभु पद शिर नावे॥ छहहिं चरण रति अष्ट याम की। आरती कीजे श्री परशुराम की॥
ऊँ जय परशुधारी, स्वामी जय परशुधारी। सुर नर मुनिजन सेवत, श्रीपति अवतारी॥
जमदग्नी सुत नरसिंह, मां रेणुका जाया। मार्तण्ड भृगु वंशज, त्रिभुवन यश छाया॥
कांधे सूत्र जनेऊ, गल रुद्राक्ष माला। चरण खड़ाऊँ शोभे, तिलक त्रिपुण्ड भाला॥
ताम्र श्याम घन केशा, शीश जटा बांधी। सुजन हेतु ऋतु मधुमय, दुष्ट दलन आंधी॥
मुख रवि तेज विराजत, रक्त वर्ण नैना। दीन-हीन गो विप्रन, रक्षक दिन रैना॥
कर शोभित बर परशु, निगमागम ज्ञाता। कंध चार-शर वैष्णव, ब्राह्मण कुल त्राता॥
माता पिता तुम स्वामी, मीत सखा मेरे। मेरी बिरत संभारो, द्वार पड़ा मैं तेरे॥
अजर-अमर श्री परशुराम की, आरती जो गावे। पूर्णेन्दु शिव साखि, सुख सम्पति पावे॥
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