
Pahalgam Kashmir Terrorist Attack : कश्मीर की वादियों में जब शांति लौट रही थी, तब आतंक ने एक बार फिर उस अमन के सपने को चकनाचूर कर दिया है। ऐसा प्रतीत होता है कि जब भी घाटी में सामान्य स्थिति बहाल होने लगती है, जब लोग अतीत की हिंसा को पीछे छोड़कर आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं, तभी कोई न कोई आतंकी घटना फिर उसी पुराने डर को ताजा कर देती है। 22 अप्रैल को पहलगाम में जो हुआ, वह इसी रणनीति का हिस्सा मालूम होता है—एक सोची-समझी, सुनियोजित और कायराना हरकत।
पिछले कुछ सालों से सरकार और स्थानीय लोगों की कोशिशों से घाटी में अमन का माहौल बन रहा था। चुनाव शांतिपूर्वक हुए, टूरिज्म ने रफ्तार पकड़ी, और लोग एक सामान्य जीवन की ओर लौटने लगे थे। ऐसे में इस तरह का हमला सिर्फ मासूम जिंदगियों को ही नहीं निगलता, बल्कि वह उस भरोसे को भी तोड़ने की कोशिश करता है, जो वहां की जनता दोबारा बनाने में लगी थी।
पहलगाम में पर्यटकों पर आतंकी हमला – कब, कहां, कैसे?
हमले की तारीख और स्थान
22 अप्रैल 2025 को, कश्मीर के खूबसूरत पर्यटन स्थल पहलगाम में आतंकवाद ने एक बार फिर अपनी काली छाया फैलाई। जिस जगह को लोग प्राकृतिक सौंदर्य, शांति और आध्यात्मिक अनुभव के लिए चुनते हैं, वही जगह कुछ ही पलों में मातम का केंद्र बन गई। इस हमले को विशेष रूप से पर्यटकों को निशाना बनाकर अंजाम दिया गया—जो इस घटना को और अधिक भयावह बना देता है।
हमले की भयावहता और हताहतों का आंकड़ा
इस बर्बर हमले में कम से कम 26 निर्दोष नागरिकों की जान चली गई। इनमें महिलाएं, बच्चे और वरिष्ठ नागरिक शामिल थे—वे लोग जो सिर्फ एक खूबसूरत छुट्टी बिताने आए थे, न कि आतंक के साए में जीने या मरने के लिए। शुरुआती जांच से पता चलता है कि हमलावरों ने सुनियोजित तरीके से हमला किया, उनके पास उन्नत हथियार थे और उन्होंने पहले से ही पूरे इलाके की रेकी कर रखी थी।
आतंकी संगठनों द्वारा इस हमले की जिम्मेदारी भले ही अभी स्पष्ट न हो, लेकिन इस हमले की स्टाइल और टारगेट देखकर समझ आता है कि यह एक खास संदेश देने की कोशिश थी—शांति को स्वीकार नहीं करेंगे, और भारत की कूटनीतिक कामयाबी को हर हाल में धुंधला करना है।
शांति की ओर बढ़ते कश्मीर को क्यों निशाना बनाया गया?
कश्मीर में लौट रही थी सामान्य स्थिति
2019 के बाद घाटी में कई बड़े बदलाव आए। अनुच्छेद 370 हटने के बाद धीरे-धीरे हालात स्थिर हुए, निवेश आने लगा, और सबसे महत्वपूर्ण—लोगों का भरोसा लौटने लगा। स्थानीय युवा अब पत्थरबाजी नहीं, बल्कि नौकरी, शिक्षा और स्टार्टअप्स की बातें करने लगे थे। इसी बीच, जब हर ओर से शांति की तस्वीरें सामने आ रही थीं, यह हमला जैसे एक करारा तमाचा था उन सभी उम्मीदों पर।
विधानसभा चुनावों की सफलता
कश्मीर में हाल ही में शांतिपूर्वक विधानसभा चुनाव संपन्न हुए, जिसमें लोगों ने भारी संख्या में हिस्सा लिया। यह किसी चमत्कार से कम नहीं था कि चुनाव के दौरान न कोई बड़ा हिंसक प्रदर्शन हुआ, न कोई बायकॉट। यह सब दिखाता है कि वहां की जनता अब लोकतंत्र की मुख्यधारा में लौटना चाहती है। और शायद यही आतंकियों को सबसे ज्यादा खटक रहा है। वे नहीं चाहते कि आम कश्मीरी अपनी ज़िंदगी खुद तय करे, वे चाहते हैं कि घाटी हमेशा अशांति और डर के साए में रहे।
अंतरराष्ट्रीय घटनाओं के साथ हमलों की टाइमिंग – महज इत्तेफाक या सोची-समझी साजिश?
अमेरिकी उपराष्ट्रपति की भारत यात्रा के साथ मेल
जब पहलगाम में हमला हुआ, उस समय अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस भारत में थे, और जयपुर में भारत-अमेरिका संबंधों की मजबूती पर चर्चा कर रहे थे। यह संयोग नहीं हो सकता कि ठीक उसी वक्त घाटी में हमला हुआ। यह एक स्पष्ट संदेश था कि भारत की वैश्विक कूटनीतिक छवि को नुकसान पहुंचाया जाए, और यह दिखाया जाए कि भारत अंदरूनी तौर पर असुरक्षित है।
बिल क्लिंटन की यात्रा से पहले 2000 का चित्तिसिंघपोरा नरसंहार
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। 20 मार्च 2000 को पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के भारत दौरे से ठीक पहले, आतंकियों ने चित्तिसिंघपोरा में 36 सिखों की बेरहमी से हत्या कर दी थी। यह हमला भी उसी कड़ी का हिस्सा था, जिससे भारत की छवि को अंतरराष्ट्रीय मंच पर धूमिल किया जा सके।
2002 में क्रिस्टीना रोक्का की यात्रा और कालूचक हमला
इसी तरह 2002 में, जब अमेरिकी सहायक विदेश मंत्री क्रिस्टीना रोक्का भारत दौरे पर थीं, जम्मू के कालूचक में भीषण हमला हुआ था जिसमें 23 निर्दोष लोग मारे गए थे। ऐसे हमलों की टाइमिंग बताती है कि यह सिर्फ स्थानीय उग्रवाद नहीं, बल्कि एक वैश्विक साजिश का हिस्सा है।