
Akshaya Tritiya Date 2025 : भारत को अगर उत्सवों की धरती कहा जाए, तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी। यहां हर मौसम, हर धर्म और हर समुदाय के अनुसार त्योहार मनाए जाते हैं। चाहे वह रंगों की होली हो, दिवाली का दीपोत्सव, या फिर नवरात्रि की भक्ति भरी रातें – हर पर्व अपने साथ खास परंपराएं और पकवान लेकर आता है। ये पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं होते, बल्कि पूरे परिवार को एकजुट करने का एक माध्यम भी होते हैं।
इन पर्वों में, हर कोई अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ता है। खास बात ये है कि त्योहारों के साथ खाना भी एक बड़ी भूमिका निभाता है – हर त्योहार की एक खास डिश होती है, जो न केवल स्वाद में भरपूर होती है बल्कि उस अवसर के प्रतीकवाद को भी दर्शाती है।
अक्षय तृतीया: एक पावन अवसर
इन्हीं त्योहारों की श्रृंखला में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है अक्षय तृतीया। इसे आखा तीज या अक्ती के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व विशेष रूप से शुभ माना जाता है, क्योंकि इस दिन किए गए कार्यों का फल अक्षय रहता है – यानी कभी समाप्त नहीं होता। यह न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टिकोण से भी इसका विशेष महत्व है।
इस दिन नए कार्य शुरू करना, भूमि खरीदना, सोना लेना या शादी जैसे शुभ कार्य करना अत्यंत फलदायी माना जाता है। हर वर्ष वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को यह पर्व मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के छठे अवतार, परशुराम जी का जन्म हुआ था, जिनकी विशेष रूप से पूजा होती है।
अक्षय तृतीया का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
'अक्षय' का अर्थ और प्रतीकात्मकता
‘अक्षय’ का शाब्दिक अर्थ होता है – जो कभी नष्ट न हो, जिसका कभी अंत न हो। इसी सोच के साथ यह पर्व भारतीयों के दिलों में एक खास स्थान रखता है। माना जाता है कि इस दिन किया गया कोई भी कार्य, दान, पूजा या निवेश, कभी व्यर्थ नहीं जाता। यही कारण है कि लोग इस दिन सोना खरीदते हैं – यह आर्थिक रूप से शुभ और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
इस दिन को संपन्नता, सफलता और स्थायित्व के साथ जोड़ा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस दिन महाभारत का लेखन शुरू हुआ था और सुदामा ने कृष्ण को चावल भेंट किया था, जिससे उनके जीवन में समृद्धि आई थी।
भगवान परशुराम और उनका जन्मोत्सव
भगवान परशुराम, विष्णु जी के छठे अवतार माने जाते हैं। वे धर्म और न्याय के प्रतीक हैं। उनका जन्म अक्षय तृतीया के दिन हुआ था, इसलिए इस दिन को उनका जन्मोत्सव भी कहा जाता है। उनका जीवन शक्ति, साहस और धर्म की रक्षा के लिए समर्पित रहा है।
अक्षय तृतीया के दिन उनकी पूजा विशेष रूप से की जाती है, ताकि उनके गुणों की प्रेरणा ली जा सके। विशेषकर ब्राह्मण समुदाय में इस दिन को बड़े उत्साह से मनाया जाता है।
लक्ष्मी-नारायण पूजन की परंपरा
अक्षय तृतीया के दिन देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा करना अत्यंत शुभ माना जाता है। यह पूजा केवल धन और समृद्धि की कामना तक सीमित नहीं होती, बल्कि यह संतुलित जीवन, सौहार्द और शांति की प्रार्थना भी होती है।
घर में पूजा की विशेष तैयारी की जाती है, जिसमें पीले वस्त्र, चंदन, कमल के फूल और ताजे फल शामिल होते हैं। पूजा के बाद खास भोग चढ़ाया जाता है, जो प्रेम और श्रद्धा से बना होता है।