
Akshaya Tritiya 2025: इस बार अक्षय तृतीया का पर्व कब मनाया जाएगा और अक्षय तृतीया पर मां लक्ष्मी की पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है, आइए जानते हैं-
1. अमावस्या तिथि का धार्मिक महत्व
हिंदू धर्म में अमावस्या तिथि को अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण माना गया है। यह तिथि विशेष रूप से पितरों को समर्पित होती है। माना जाता है कि अमावस्या के दिन पितरों की पूजा, तर्पण और पिंडदान करने से पितृ दोष समाप्त होता है और घर-परिवार में सुख-शांति बनी रहती है। इस दिन व्यक्ति अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करता है और उनके आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए पूजा-अर्चना करता है।
अमावस्या के दिन पवित्र नदियों में स्नान, दान और जप-तप करने का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि इस दिन किए गए पुण्य कर्मों का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है। विशेषकर वैशाख मास की अमावस्या को दर्श अमावस्या भी कहा जाता है, जो धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत फलदायी मानी जाती है।
2. दर्श अमावस्या 2025 की तिथि और समय
पंचांग के अनुसार, वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि 27 अप्रैल 2025 को पड़ रही है। यह तिथि 27 अप्रैल की सुबह 4 बजकर 49 मिनट से शुरू होकर 28 अप्रैल की रात 1 बजे समाप्त होगी। चूंकि अमावस्या का व्रत और पूजा उदयातिथि के अनुसार किया जाता है, इसलिए दर्श अमावस्या 27 अप्रैल, रविवार को मनाई जाएगी।
इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने, सूर्य देव को अर्घ्य देने, पितरों का तर्पण करने और जरूरतमंदों को दान देने की परंपरा है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, इस दिन किया गया तर्पण विशेष फलदायी होता है और पितरों को तृप्त करता है।
3. क्यों मनाई जाती है दर्श अमावस्या?
अमावस्या का दिन विशेष रूप से पितरों के लिए आरक्षित होता है। मान्यता है कि जो लोग अपने पितरों को श्रद्धापूर्वक याद करते हैं और विधिपूर्वक उनका तर्पण करते हैं, उनके जीवन में पितृ दोष नहीं आता। अगर पितर अप्रसन्न हो जाते हैं तो व्यक्ति के जीवन में कई प्रकार की बाधाएं आती हैं, जैसे आर्थिक संकट, मानसिक तनाव और संतान से संबंधित परेशानियाँ।
दर्श अमावस्या का उद्देश्य पितरों की आत्मा की शांति और उन्हें मोक्ष दिलाने का होता है। इस दिन की गई पूजा, तर्पण और दान न केवल पितरों को तृप्त करता है बल्कि वंशजों के जीवन में सुख-शांति और समृद्धि भी लाता है।
4. दर्श अमावस्या पर करें ये तीन शुभ कार्य
(1) पवित्र स्नान:
इस दिन पवित्र नदी, विशेषकर गंगा, यमुना या किसी तीर्थ सरोवर में स्नान करना अत्यंत पुण्यदायक माना गया है। यदि किसी कारणवश नदी में स्नान संभव न हो, तो घर पर ही बाल्टी में गंगाजल मिलाकर स्नान किया जा सकता है। ऐसा स्नान शरीर को शुद्ध करता है और आत्मा को भी शांति प्रदान करता है।
(2) पितृ तर्पण और पिंडदान:
वैशाख अमावस्या पर पितरों के तर्पण का विशेष महत्व है। इस दिन गाय के गोबर, तिल, कुशा और जौ के आटे से पिंड बनाए जाते हैं। पिंड में चावल का आटा भी मिलाया जा सकता है। फिर यह पिंड पवित्र नदी में प्रवाहित किया जाता है या किसी पवित्र स्थान पर अर्पित किया जाता है। यह क्रिया पितरों की आत्मा की शांति के लिए की जाती है।
(3) दान का महत्व:
अमावस्या पर दान का विशेष महत्व होता है। इस दिन अन्न, वस्त्र, तांबे के बर्तन, गुड़, तिल, दक्षिणा आदि का दान किया जाता है। साथ ही, पितरों की कृपा पाने के लिए कौवों, गायों, कुत्तों और अन्य पशु-पक्षियों को भोजन देना भी शुभ माना गया है। यह श्रद्धा और करुणा का प्रतीक है।
5. दर्श अमावस्या पर क्या न करें?
इस दिन मांस-मदिरा का सेवन न करें।
बाल और नाखून काटने से बचें।
क्रोध और वाद-विवाद से दूरी बनाएं रखें।
घर की सफाई जरूर करें लेकिन झाड़ू-पोंछा अमावस्या के समय के बाद ही करें।
किसी की निंदा या अपशब्द न बोलें, क्योंकि यह दिन आत्माओं को शांति देने के लिए है, और नेगेटिव भावनाएं इस ऊर्जा को बाधित करती हैं।
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