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Good Friday 2025 : गुड फ्राइडे ईसाई समुदाय के लिए एक अत्यंत पवित्र और भावनात्मक दिन होता है। यह दिन ईस्टर संडे से एक दिन पहले आता है और इसे मुख्य रूप से प्रभु यीशु मसीह के बलिदान की याद में मनाया जाता है। इस दिन ईसाई धर्म के अनुयायी प्रभु यीशु के द्वारा मानवता के लिए दिए गए सर्वोच्च बलिदान को याद करते हैं। गुड फ्राइडे को 'ब्लैक फ्राइडे' या 'होली फ्राइडे' के नाम से भी जाना जाता है। आइए जानें कि इस दिन से जुड़ी खास बातें क्या हैं और इसे कैसे मनाया जाता है।

'हैप्पी गुड फ्राइडे' क्यों नहीं कहा जाता?

गुड फ्राइडे एक ऐसा दिन है जब ईसाई समुदाय शोक व्यक्त करता है। यह खुशी या उत्सव का दिन नहीं है, इसलिए किसी को 'हैप्पी गुड फ्राइडे' कहना इस दिन की भावनाओं के अनुरूप नहीं होता। इस दिन यीशु मसीह को क्रूस पर चढ़ाया गया था। बाइबिल के अनुसार, उन्हें पहले कोड़ों से पीटा गया, फिर सिर पर कांटों का ताज पहनाया गया और अंत में हाथों और पैरों में कील ठोककर सूली पर चढ़ाया गया। जिस स्थान पर यह घटना हुई, उसे गोलगोथा कहा जाता है।

इस दिन को 'गुड फ्राइडे' कहने के पीछे कई मान्यताएँ हैं। कुछ लोग मानते हैं कि "गुड" शब्द यहां "गॉड" से निकला है, जबकि कुछ लोग इसे इसलिए "गुड" कहते हैं क्योंकि इस दिन मानवता के पापों से मुक्ति के लिए यीशु मसीह ने अपने प्राण न्योछावर किए थे, जो एक आध्यात्मिक दृष्टिकोण से 'अच्छा' कार्य था।

चूंकि यह दिन दुख और आत्मनिरीक्षण का प्रतीक है, इसलिए इस दिन को 'हैप्पी' कहना उचित नहीं समझा जाता। इसके स्थान पर लोग प्रार्थना, उपवास और शांति के साथ इस दिन को मनाते हैं।

गुड फ्राइडे कैसे मनाया जाता है?

गुड फ्राइडे पर ईसाई समुदाय के लोग दिन की शुरुआत चर्च में जाकर करते हैं। चर्चों में विशेष प्रार्थना सभाएं आयोजित की जाती हैं जहां यीशु मसीह के बलिदान की घटनाओं को याद किया जाता है। इस दिन चर्च की घंटियाँ नहीं बजाई जातीं, क्योंकि यह एक शोक का दिन होता है।

यह दिन आत्म-चिंतन और प्रायश्चित का समय होता है। ईसाई लोग इस दिन उपवास रखते हैं और मांसाहार से परहेज करते हैं। घरों में सजावट की वस्तुओं को ढक दिया जाता है और चर्चों में काले कपड़े चढ़ाए जाते हैं, जो शोक का प्रतीक हैं। कई स्थानों पर यीशु के अंतिम शब्दों और उनके जीवन के अंतिम पलों को नाटकीय रूप में प्रस्तुत किया जाता है ताकि लोग उनके बलिदान को समझ सकें।

इस दिन लोग प्रभु से अपने पापों के लिए क्षमा मांगते हैं और मन, वचन, और कर्म से शुद्ध रहने का संकल्प लेते हैं। कई चर्चों में ‘क्रॉस’ को लेकर एक विशेष यात्रा (procession) भी निकाली जाती है जो ईसा मसीह के सूली चढ़ने की यात्रा का प्रतीक होती है।


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