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भारतीय संस्कृति में देवी-देवताओं की पूजा का विशेष महत्व है। विशेष रूप से सुहागिन महिलाएं देवी पार्वती की पूजा को अपना सौभाग्य और वैवाहिक सुख बनाए रखने का माध्यम मानती हैं। व्रत और त्योहारों में देवी पार्वती की पूजा एक आम परंपरा है, जो महिलाओं को अखंड सौभाग्य, लंबी उम्र वाले पति और सुखमय वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद देती है। देवी पार्वती के कई रूपों की पूजा की जाती है, जैसे महागौरी, दुर्गा, काली, चंडी आदि। लेकिन एक रूप ऐसा भी है जिसकी पूजा सुहागन महिलाएं नहीं करतीं—यह रूप है देवी धूमावती का।

देवी धूमावती: पार्वती का भयावह और अलग स्वरूप

देवी धूमावती को देवी पार्वती का ऐसा रूप माना जाता है जो विधवा का प्रतीक है। इस रूप में देवी पार्वती अकेली, गंभीर और विकराल स्वरूप में मानी जाती हैं। हिंदू शास्त्रों में कहा गया है कि यह स्वरूप दरिद्रता, वैधव्य और जीवन के अंधकारमय पक्षों का प्रतीक है। इसी कारण से सुहागन स्त्रियों को देवी धूमावती की पूजा करना निषिद्ध माना गया है।

क्यों नहीं करतीं सुहागन महिलाएं देवी धूमावती की पूजा?

देवी धूमावती का स्वरूप विधवा माना जाता है। उनके इस रूप में न तो श्रृंगार होता है, न ही जीवन में उल्लास और रंगों की उपस्थिति होती है। उन्हें सदा अकेली, बिना वाहन और बिना साथी के दिखाया जाता है। भारतीय परंपरा में सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और अखंड सौभाग्य के लिए देवी पार्वती की पूजा करती हैं। ऐसे में देवी धूमावती की पूजा करना वैधव्य की ओर संकेत माना जाता है, जो किसी भी सुहागन स्त्री के लिए अपशकुन माना जाता है।

देवी धूमावती की उत्पत्ति की कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार देवी पार्वती को अत्यधिक भूख लगती है। वे भगवान शिव से भोजन की मांग करती हैं। शिव जी उन्हें थोड़ा इंतजार करने के लिए कहते हैं और भोजन की तलाश में निकल जाते हैं। समय बीतता जाता है, लेकिन वे लौटकर नहीं आते। भूख से व्याकुल पार्वती जी का धैर्य टूटता है और वे भगवान शिव को ही निगल जाती हैं। इस घटना के बाद देवी पार्वती का स्वरूप विधवा जैसा हो जाता है, क्योंकि शिव का लोप हो जाता है।

इतना ही नहीं, शिव जी के गले में स्थित हलाहल विष के कारण देवी का शरीर धुएं जैसा हो जाता है। इसी कारण उनका नाम पड़ा “धूमावती”—धुएं जैसी। उनका यह रूप अत्यंत विकराल और भयावह होता है।

भगवान शिव का वरदान

जब भगवान शिव अपनी माया से बाहर निकलते हैं, वे देवी पार्वती को आशीर्वाद देते हैं कि उनका यह रूप—धूमावती—भी पूजनीय होगा। हालांकि यह पूजा विशेष परिस्थितियों में ही होती है और इसे करने वाले साधक आमतौर पर तांत्रिक पद्धतियों से देवी धूमावती की कृपा प्राप्त करते हैं। यह माना जाता है कि देवी धूमावती की पूजा करने से अत्यंत कठिन समस्याएं दूर होती हैं, दरिद्रता समाप्त होती है और पुराने रोगों से मुक्ति मिलती है।


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