
बॉलीवुड में बायोपिक का चलन कोई नया नहीं है। लोगों को असली जिंदगी पर आधारित कहानियां बेहद पसंद आती हैं, खासतौर पर जब वो कहानी किसी मशहूर खिलाड़ी की हो। खेल की दुनिया में मेहनत, संघर्ष और सफलता की कहानियां अपने आप में प्रेरणादायक होती हैं, और जब इन्हें सिल्वर स्क्रीन पर दिखाया जाता है, तो दर्शक हर पल को जीने लगते हैं।
लेकिन जितनी दिलचस्प ये कहानियां होती हैं, उतनी ही रोचक होती है इन खिलाड़ियों की बायोपिक से जुड़ी फीस की कहानी। एक ओर जहां एक दिग्गज खिलाड़ी ने सिर्फ ₹1 में अपनी जिंदगी की कहानी पर फिल्म बनाने की इजाजत दी, वहीं दूसरी ओर एक क्रिकेट सुपरस्टार ने ₹45 करोड़ लिए!
"भाग मिल्खा भाग" और मिल्खा सिंह की सादगी
2013 में आई फिल्म "भाग मिल्खा भाग" को आज भी याद किया जाता है। यह फिल्म भारत के महान एथलीट मिल्खा सिंह की जीवन कहानी पर आधारित थी, जिन्हें "फ्लाइंग सिख" के नाम से जाना जाता है।
इस फिल्म का निर्देशन राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने किया था।
मिल्खा सिंह की भूमिका में फरहान अख्तर नजर आए थे, जिनकी परफॉर्मेंस को जमकर सराहा गया।
फिल्म का बजट था ₹41 करोड़, और इसने बॉक्स ऑफिस पर ₹200 करोड़ से अधिक की कमाई की।
सबसे चौंकाने वाली बात – मिल्खा सिंह ने इस फिल्म के लिए सिर्फ ₹1 रुपये की फीस ली थी।
उन्होंने कहा था कि वह चाहते हैं कि उनकी कहानी से देश के युवा प्रेरणा लें। उन्होंने शर्त रखी थी कि यह एक प्रेरणादायक फिल्म होनी चाहिए और इसमें कोई भी विकृति नहीं होनी चाहिए।
यह एक मिसाल है कि कैसे कुछ महान लोग पैसों से ऊपर समाज को कुछ देने की भावना रखते हैं।
"एम.एस. धोनी: द अनटोल्ड स्टोरी" और धोनी की ब्रांड वैल्यू
अब बात करते हैं महेंद्र सिंह धोनी की, जिन पर बनी बायोपिक "एम.एस. धोनी: द अनटोल्ड स्टोरी" 2016 में रिलीज हुई थी। इस फिल्म ने धोनी के संघर्ष, क्रिकेट की शुरुआत, और भारतीय टीम के कप्तान बनने तक का सफर बेहद शानदार ढंग से दिखाया।
फिल्म का निर्देशन नीरज पांडे ने किया था।
धोनी का किरदार निभाया था सुशांत सिंह राजपूत ने, जिनकी एक्टिंग को लोगों ने दिल से पसंद किया।
फिल्म में दिशा पाटनी, कियारा आडवाणी और अनुपम खेर जैसे कलाकार भी थे।
धोनी ने इस बायोपिक के राइट्स के लिए कथित तौर पर ₹45 करोड़ लिए थे।
यह अब तक किसी भी भारतीय बायोपिक के लिए ली गई सबसे महंगी फीस मानी जाती है।
फिल्म का बजट था ₹104 करोड़, और इसने दुनिया भर में ₹216 करोड़ का कलेक्शन किया।
धोनी की ब्रांड वैल्यू और उनके फैन बेस को देखते हुए, यह रकम प्रोड्यूसर्स के लिए कोई घाटे का सौदा नहीं था। उनकी कहानी को जानने की उत्सुकता ने दर्शकों को सिनेमाघरों तक खींचा।
कहानी से भी बड़ी होती है भावना
एक ओर जहां मिल्खा सिंह ने देश और समाज को कुछ देने की भावना से काम किया, वहीं धोनी ने अपने ब्रांड को कैश करने का सही मौका चुना। दोनों दृष्टिकोण सही हैं – एक प्रेरणा है, तो दूसरा प्रोफेशनल निर्णय।
इन दोनों कहानियों से यह समझ आता है कि बायोपिक सिर्फ स्क्रीन पर चलने वाली फिल्में नहीं होतीं, बल्कि वो भावनाओं, संघर्ष और प्रेरणा का जखीरा होती हैं। चाहे फीस ₹1 हो या ₹45 करोड़ – असली मूल्य उस कहानी का होता है जो लाखों दिलों को छू जाती है।
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