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ई-कॉमर्स वेबसाइट्स पर आप जो चमकदार रेटिंग्स और शानदार समीक्षाएं पढ़ते हैं, क्या वो वाकई सच्ची होती हैं? हाल ही में एक खुलासे ने इस भरोसे को झकझोर कर रख दिया है। साइबर सिक्योरिटी इंटेलिजेंस फर्म CloudSEK की रिपोर्ट के अनुसार, ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर फर्जी समीक्षाओं का एक बड़ा नेटवर्क काम कर रहा है जो उपभोक्ताओं को गुमराह करने और मुनाफा कमाने के इरादे से रेटिंग्स और फीडबैक को मैनेज करता है।

संगठित ढंग से चल रही फर्जी रिव्यू की इंडस्ट्री

CloudSEK ने अपनी जांच में यह पाया कि फेक रिव्यू देने वालों का एक व्यवस्थित नेटवर्क काम करता है, जिसमें मार्केटिंग एजेंसियां, मीडिएटर और रिव्यू पोस्ट करने वाले शामिल होते हैं। ये सभी मिलकर ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स पर उत्पादों की लोकप्रियता को आर्टिफिशियल तरीके से बढ़ाते हैं।

कई सेलर्स अपनी रेटिंग और समीक्षाओं को बेहतर दिखाने के लिए इन मार्केटिंग एजेंसियों के साथ गठजोड़ करते हैं। ये एजेंसियां फिर ऐसे मीडिएटर की नियुक्ति करती हैं जो WhatsApp और Telegram जैसे सोशल प्लेटफॉर्म्स पर रिव्यू पोस्ट करने वालों का नेटवर्क तैयार करते हैं।

कैसे काम करता है ये फर्जी रिव्यू सिस्टम?

यह पूरा फेक रिव्यू सिस्टम कई चरणों में बेहद योजनाबद्ध तरीके से काम करता है:

सेलर और एजेंसी की सांठगांठ: सबसे पहले, एक ई-कॉमर्स सेलर मार्केटिंग एजेंसी से संपर्क करता है ताकि उसकी प्रोडक्ट रेटिंग्स को आर्टिफिशियली बढ़ाया जा सके।

मीडिएटर की नियुक्ति: इसके बाद एजेंसी एक मीडिएटर को नियुक्त करती है जो इस पूरी प्रक्रिया को ऑपरेट करता है।

ट्रैकिंग सिस्टम: मीडिएटर एक ट्रैकिंग पोर्टल बनाता है जिसमें ग्राहक की जानकारी, ऑर्डर आईडी और रिफंड स्टेटस को लॉग किया जाता है।

ग्रुप रिक्रूटमेंट: मीडिएटर WhatsApp और Telegram जैसे प्लेटफॉर्म्स के जरिए फेक रिव्यू देने वाले लोगों को जोड़ता है।

लिंक शेयरिंग और खरीदारी: इन लोगों को एक लिंक भेजा जाता है जिससे वे प्रोडक्ट को खरीदते हैं (अक्सर एफिलिएट लिंक के जरिए)।

फेक रिव्यू पोस्टिंग: बिना प्रोडक्ट का असल अनुभव लिए ही, ये लोग उसे हाई रेटिंग और पॉजिटिव रिव्यू के साथ प्रमोट करते हैं।

प्रमाण प्रस्तुत करना: रिव्यू पोस्ट करने के बाद, ये पार्टिसिपेंट स्क्रीनशॉट और रिव्यू का URL मीडिएटर को भेजते हैं।

रिफंड प्रक्रिया: वेरिफिकेशन के बाद, मीडिएटर उन्हें पूरी या आंशिक रिफंड की रकम लौटा देता है।

कमिशन सिस्टम: पूरे नेटवर्क में शामिल लोग इस हेरफेर किए गए ट्रांजैक्शन से कमिशन कमाते हैं।

उपभोक्ताओं की गुमराही: नतीजतन, प्रोडक्ट को अनावश्यक रूप से बढ़ावा मिलता है और असली अच्छे प्रोडक्ट्स बाजार में पिछड़ जाते हैं।

असर: उपभोक्ता और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म दोनों को नुकसान

फेक रिव्यू का सबसे बड़ा नुकसान यह होता है कि उपभोक्ता उस पर भरोसा करके ऐसे प्रोडक्ट खरीद लेते हैं जो गुणवत्ता में बेहद घटिया होते हैं। इस प्रक्रिया से केवल उपभोक्ता ही नहीं, बल्कि ईमानदारी से काम करने वाले विक्रेता भी नुकसान में रहते हैं।

CloudSEK की रिपोर्ट के मुताबिक, एक मीडिएटर ने महज 3-4 महीनों में करीब 4,000 फर्जी रिव्यू तैयार किए जिससे 13 लाख रुपये के प्रोडक्ट प्रभावित हुए। अगर इस नेटवर्क को व्यापक रूप में देखा जाए, तो करोड़ों रुपये का व्यापार इन हेराफेरी से प्रभावित होता है।

कानूनी पहलू और नियामक सख्ती

भारत सरकार भी इस तरह की फर्जी गतिविधियों पर लगाम लगाने के लिए सक्रिय है। भारत में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019, ई-कॉमर्स नियम, 2020 और प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 जैसे कानून फर्जी रिव्यू को एक अनुचित व्यापारिक प्रथा मानते हैं। अगर कोई दोषी पाया जाता है, तो उस पर भारी जुर्माना लगाया जा सकता है।


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