
Best Cooking Oil: आज के समय में हार्ट अटैक की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं, और चौंकाने वाली बात यह है कि अब यह बीमारी सिर्फ बुजुर्गों तक सीमित नहीं रही। युवाओं में भी हार्ट अटैक के केस सामने आ रहे हैं। अक्सर इसे सिर्फ कोलेस्ट्रॉल के बढ़ते स्तर से जोड़ा जाता है, लेकिन असलियत इससे कहीं ज्यादा गहराई में है। आइए जानते हैं क्या कहते हैं विशेषज्ञ, और कैसे हम अपनी जीवनशैली में छोटे-छोटे बदलाव करके इस खतरे को कम कर सकते हैं।
कोलेस्ट्रॉल: शरीर के लिए जरूरी, पर संतुलन जरूरी है
कोलेस्ट्रॉल हमारे शरीर के लिए एक ज़रूरी तत्व है, जिसे शरीर खुद बनाता है। इसका काम है हार्मोन निर्माण, कोशिकाओं की संरचना को बनाए रखना और विटामिन D के निर्माण में मदद करना। कोलेस्ट्रॉल खुद में बुरा नहीं है, लेकिन जब इसकी मात्रा शरीर में असंतुलित हो जाती है, तब यह दिल की बीमारियों की वजह बन सकता है।
पहले यह माना जाता था कि बाहर से लिए गए फैट्स, जैसे घी या मक्खन, कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाते हैं। लेकिन अब समझा गया है कि असल में यह शरीर की मेटाबॉलिज्म प्रक्रिया पर निर्भर करता है कि वह इन फैट्स को कैसे हैंडल करता है। इसलिए जरूरी है कि हम अपने शरीर को समझें और सही तरह के फैट्स को चुनें।
व्हाइट बटर बनाम येलो बटर: कौन है बेहतर?
विशेषज्ञों की मानें तो अगर आपको मक्खन का सेवन करना ही है, तो येलो बटर की बजाय व्हाइट बटर बेहतर विकल्प हो सकता है। इसका कारण है कि व्हाइट बटर अधिक नेचुरल और कम प्रोसेस्ड होता है। येलो बटर में आर्टिफिशियल कलर और अन्य केमिकल्स हो सकते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह हो सकते हैं।
तेल का सही चुनाव: सेहत के लिए बेहद जरूरी
तेल हमारी डाइट का अहम हिस्सा है, लेकिन इसका चुनाव सोच-समझकर करना बहुत जरूरी है। डॉक्टर त्रेहान के मुताबिक, हाइड्रोजेनेटेड ऑयल, जिसे हम आम भाषा में वनस्पति घी कहते हैं, शरीर के लिए बहुत हानिकारक होता है। यह धमनियों में रुकावट (आर्टरी क्लॉगिंग) पैदा करता है, जिससे हार्ट अटैक या स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है।
आर्टरी क्लॉगिंग तब होती है जब धमनियों में प्लेक (जमा हुआ पदार्थ) बन जाता है, जिससे रक्त प्रवाह बाधित हो जाता है। यह स्थिति बेहद गंभीर हो सकती है और समय रहते ध्यान न देने पर जानलेवा भी साबित हो सकती है।
लिक्विड बनाम सॉलिड फैट: कौन है फायदेमंद?
तेल का प्रकार भी मायने रखता है। लिक्विड फैट जैसे कि ऑलिव ऑयल, राइस ब्रान ऑयल आदि को बेहतर माना जाता है क्योंकि इनमें मोनोसैचुरेटेड फैट होता है, जो दिल के लिए फायदेमंद है। वहीं, सॉलिड फैट्स जैसे कि वनस्पति घी या जमने वाले तेलों में पॉलीसैचुरेटेड फैट होता है, जो शरीर में कोलेस्ट्रॉल बढ़ाने का काम करता है।
मेडिटेरेनियन डाइट: दिल की सेहत का सुरक्षा कवच
मेडिटेरेनियन डाइट, जिसमें सब्जियां, फल, साबुत अनाज और ऑलिव ऑयल प्रमुख होते हैं, हार्ट हेल्थ के लिए बेस्ट मानी जाती है। रिसर्च बताती है कि जो लोग इस डाइट का पालन करते हैं, उन्हें हार्ट अटैक का खतरा सबसे कम होता है। ऑलिव ऑयल इस डाइट का अहम हिस्सा है, जो न सिर्फ स्वादिष्ट होता है बल्कि स्वास्थ्यवर्धक भी है।
हर छह महीने में बदलें खाना पकाने का तेल
हालांकि ऑलिव ऑयल हर किसी की पहुंच में नहीं होता क्योंकि यह महंगा है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि बाकी तेल खराब हैं। डॉक्टर की सलाह है कि हमें हर 6 महीने में अपने कुकिंग ऑयल को बदलते रहना चाहिए। चाहे आप सरसों का तेल लें, राइस ब्रान या फिर सूरजमुखी का तेल—हर तेल की अपनी खूबियां और कुछ सीमाएं होती हैं।
हर तेल में कुछ ऐसे तत्व होते हैं, जो लंबे समय तक लगातार इस्तेमाल करने पर शरीर पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं। इसलिए यदि आप हर 6 महीने में तेल बदलते हैं, तो आप अपने शरीर को इन संभावित नुकसानों से बचा सकते हैं।
कश्मीर और बंगाल में पेसमेकर की बढ़ती जरूरत
कश्मीर और बंगाल जैसे इलाकों में पेसमेकर की डिमांड ज्यादा देखने को मिली है। इसका कारण बताया गया है कि इन इलाकों में लंबे समय से सरसों के तेल का अधिक उपयोग होता है। कुछ ऑब्जर्वेशन स्टडीज में यह देखा गया है कि सरसों तेल में कुछ तत्व ऐसे हो सकते हैं जो दिल की नसों को प्रभावित करते हैं।
हालांकि यह कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि तेल का लगातार एक ही प्रकार में इस्तेमाल कुछ हानिकारक प्रभाव डाल सकता है। इसीलिए तेल का रोटेशन यानी समय-समय पर तेल बदलते रहना एक समझदारी भरा कदम है।