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इन दिनों जब भी न्यूज़ चैनल खोलिए या अख़बार पलटिए, एक नाम लगातार सुर्खियों में बना हुआ है – प्रवर्तन निदेशालय, यानी ED। और इसका कारण सिर्फ़ एक या दो नहीं, बल्कि दो बड़े हाई-प्रोफाइल केस हैं – नेशनल हेरल्ड मनी लॉन्ड्रिंग केस और हरियाणा लैंड स्कैम। इन दोनों मामलों की जांच ने न सिर्फ़ देश की राजनीति को झकझोर कर रख दिया है, बल्कि सत्ता और विपक्ष के बीच की खाई को और भी चौड़ा कर दिया है।

अब बात करें नेशनल हेरल्ड मामले की, तो इसमें ED ने एक बेहद बड़ी कार्रवाई करते हुए कांग्रेस की शीर्ष नेताओं सोनिया गांधी और राहुल गांधी के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी है। साथ ही इस लिस्ट में कांग्रेस ओवरसीज के प्रमुख सैम पित्रोदा का नाम भी शामिल है। यह पहली बार है जब सोनिया और राहुल को किसी चार्जशीट में बतौर आरोपी शामिल किया गया है। और ज़ाहिर है, कांग्रेस इसे सिर्फ़ एक जांच नहीं, बल्कि 'राजनीतिक बदले की कार्रवाई' बता रही है।

दूसरी तरफ़, हरियाणा लैंड स्कैम की बात करें तो रॉबर्ट वाड्रा, जो कि कांग्रेस परिवार से जुड़े हुए हैं, लगातार ED के रडार पर हैं। पूछताछ का सिलसिला इतना तीव्र हो गया है कि दो दिन लगातार उन्हें ED दफ्तर में पेश होना पड़ा। मंगलवार को जहां उनसे छह घंटे पूछताछ हुई, वहीं बुधवार को भी उन्हें फिर बुला लिया गया।

वाड्रा ने बयान दिया –

"मैं कोई सॉफ्ट टारगेट नहीं हूं। इन हमलों से मैं और मजबूत होता हूं। आज जो मैं झेल रहा हूं, कल उन्हें भी झेलना पड़ेगा। हम सच के साथ हैं, और यही हमारी ताकत है। वक्त ज़रूर बदलेगा।"

इन सब घटनाओं के बीच, एक बयान और सामने आया, जिसने सियासी हलचल को और हवा दे दी। समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा:

"ED को कांग्रेस ने ही बनाया था, और आज वही ED कांग्रेस को सबसे ज्यादा परेशान कर रही है। मेरा तो मानना है कि अब ED को ही खत्म कर देना चाहिए।"

उनकी ये बात न सिर्फ़ कटाक्ष थी, बल्कि यह संकेत भी था कि सत्ता में रहने वालों को यह नहीं भूलना चाहिए कि आज जिस संस्थान का इस्तेमाल विपक्ष पर किया जा रहा है, वही कल उनके खिलाफ भी खड़ा हो सकता है।

तो सवाल ये उठता है – क्या ED अपने मूल उद्देश्य से भटक चुकी है? क्या अब यह सिर्फ़ राजनीतिक विरोधियों को दबाने का हथियार बन चुकी है?

या फिर, यह हमारे देश की न्याय व्यवस्था का हिस्सा है जो किसी को भी – चाहे वो कितना ही ताकतवर क्यों न हो – जवाबदेह बनाना चाहती है?

राजनीति में सच्चाई की लड़ाई हमेशा कठिन होती है। पर जब जांच एजेंसियां भी इस लड़ाई का हिस्सा बन जाएं, तो ये और भी पेचीदा हो जाती है।


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