
Dubai : दुबई के क्राउन प्रिंस शेख हमदान बिन मोहम्मद अल मकतूम 8-9 अप्रैल को भारत के दौरे पर हैं। यह यात्रा उनके लिए भारत की पहली आधिकारिक यात्रा है और इस दौरान वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विदेश मंत्री एस. जयशंकर और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात करेंगे। इसके साथ ही वे एक व्यापार गोलमेज सम्मेलन में भी भाग लेंगे, जिसका उद्देश्य भारत-यूएई के संबंधों को एक नई ऊंचाई तक ले जाना है।
भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने इस यात्रा को बेहद अहम बताया है। मंत्रालय के अनुसार, यह यात्रा दोनों देशों के बीच व्यापक रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत करेगी और भारत तथा दुबई के बीच बहुआयामी संबंधों में नई ऊर्जा भरेगी।
अब सवाल यह उठता है कि यह यात्रा क्यों इतनी महत्वपूर्ण मानी जा रही है? इसका जवाब हमें उन विभिन्न क्षेत्रों में मिलता है जहां भारत और यूएई मिलकर काम कर रहे हैं – जैसे कि व्यापार, ऊर्जा, भू-राजनीतिक रणनीति और सबसे महत्वपूर्ण, मानव जुड़ाव।
1. भारत-यूएई व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (CEPA) को तीन साल पूरे
भारत और यूएई के बीच फरवरी 2022 में व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (CEPA) पर हस्ताक्षर हुए थे। इस समझौते का मकसद दोनों देशों के बीच व्यापार और निवेश को बढ़ावा देना था। 18 फरवरी 2025 को इस समझौते को तीन साल पूरे हो चुके हैं। यह समझौता 1 मई 2022 से लागू हुआ और इसके बाद से दोनों देशों के बीच व्यापार ने अभूतपूर्व रफ्तार पकड़ी है।
2020-21 में भारत और यूएई के बीच व्यापार 43.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो 2023-24 में बढ़कर 83.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया। सिर्फ अप्रैल से दिसंबर 2024 के बीच यह आंकड़ा 71.8 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया था। इसका मतलब है कि 2030 तक गैर-तेल व्यापार को 100 बिलियन डॉलर तक पहुंचाने का जो लक्ष्य रखा गया था, वह तेजी से साकार होता दिख रहा है।
भारत के निर्यात पर नजर डालें तो गैर-तेल निर्यात 2023-24 में 27.4 बिलियन डॉलर रहा, जो CEPA के लागू होने के बाद 25.6% की औसत वार्षिक वृद्धि को दर्शाता है। यह दोनों देशों के बीच बढ़ते आर्थिक सहयोग का प्रमाण है।
2. भारत और यूएई की दोस्ती: एक नई दिशा
भारत और यूएई की करीबी बढ़ाने की प्रक्रिया 2015 में शुरू हुई जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता में आने के बाद पहली बार यूएई का दौरा किया। यह दौरा ऐतिहासिक था क्योंकि इससे पहले 34 सालों तक किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने यूएई का दौरा नहीं किया था।
इस दौरे के बाद से दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी के कई नए रास्ते खुले। दोनों देश व्यापार, रक्षा, ऊर्जा, और सुरक्षा के मामलों में मिलकर काम कर रहे हैं। यह साझेदारी केवल सरकारों तक सीमित नहीं है, बल्कि ‘पीपुल टू पीपुल’ कनेक्शन भी इसका एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
3. श्रीलंका में ऊर्जा हब: त्रिकोणीय सहयोग का उदाहरण
5 अप्रैल को विदेश मंत्रालय ने जानकारी दी कि भारत और यूएई श्रीलंका में मिलकर एक ऊर्जा हब विकसित करने पर सहमत हुए हैं। यह समझौता इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की मौजूदगी और दखल बढ़ रही है। ऐसे में भारत-यूएई की साझेदारी श्रीलंका में भारत की स्थिति को मजबूत कर सकती है।
यह सहयोग केवल ऊर्जा क्षेत्र तक सीमित नहीं है, बल्कि यह इस बात का संकेत है कि भारत और यूएई वैश्विक स्तर पर मिलकर भू-राजनीतिक नीतियों में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।
4. यूएई: भारत का उदार और रणनीतिक सहयोगी
यूएई को खाड़ी में भारत का सबसे उदार और रणनीतिक सहयोगी माना जाता है। जबकि कई खाड़ी देश कट्टरपंथी विचारधाराओं को समर्थन देते हैं, यूएई इसके ठीक उलट है। वहां की सरकार अपने देश में उदार विचारधारा को बढ़ावा देती है और कट्टरपंथ से दूर रहती है।
यही कारण है कि यूएई और भारत की वैचारिक और राजनीतिक सोच काफी मेल खाती है। इस समान सोच ने दोनों देशों को एक-दूसरे के और करीब ला दिया है।
5. शेख मोहम्मद बिन जायद का भारतीयों के प्रति नजरिया
यूएई के राष्ट्रपति शेख मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान के कार्यकाल में भारत-यूएई संबंधों को नई दिशा मिली है। उन्होंने बार-बार भारत और भारतीयों के प्रति सम्मान और विश्वास का प्रदर्शन किया है।
अबू धाबी में हिंदू मंदिर की स्थापना हो या सिख गुरुद्वारे को मंजूरी देना, यह सब सहिष्णुता और विविधता की संस्कृति को दर्शाता है। इससे दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक और धार्मिक सह-अस्तित्व को मजबूती मिलती है।
6. पीपुल-टू-पीपुल कनेक्शन: भारतीय प्रवासी और उनकी अहमियत
भारत और यूएई के रिश्तों की सबसे बड़ी ताकत दोनों देशों के लोगों के बीच का संबंध है। यूएई में भारतीय प्रवासी समुदाय सबसे बड़ा है, जो वहां की कुल आबादी का लगभग 30% हिस्सा बनाता है। 2021 के आंकड़ों के अनुसार, यूएई में 35 लाख भारतीय नागरिक रहते हैं।
ये प्रवासी न केवल यूएई की अर्थव्यवस्था में योगदान करते हैं, बल्कि भारत को भी आर्थिक रूप से मजबूत करते हैं। 2022 में ही उन्होंने भारत में लगभग 20 बिलियन डॉलर भेजे थे, जो भारत की विदेशी मुद्रा भंडार के लिए बेहद अहम है।