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Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य केवल एक अर्थशास्त्री ही नहीं थे, बल्कि वे एक महान रणनीतिकार, नीतिशास्त्री और राजनीतिज्ञ भी थे। उन्हें भारतीय इतिहास में एक आदर्श शिक्षक और मार्गदर्शक के रूप में जाना जाता है। उन्होंने अपने अनुभव और ज्ञान को संकलित करते हुए एक महत्वपूर्ण ग्रंथ की रचना की, जिसे हम चाणक्य नीति के नाम से जानते हैं। इस ग्रंथ में सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक और व्यक्तिगत जीवन से जुड़ी कई उपयोगी नीतियां वर्णित हैं, जो आज भी हमारे लिए उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी उस समय थीं।

चाणक्य नीति का उद्देश्य केवल ज्ञान देना नहीं है, बल्कि यह जीवन के हर पहलू में संतुलन और व्यवहारिकता की सीख भी देती है। इस ग्रंथ में उन्होंने पुरुषों और महिलाओं के गुणों, उनके आचरण और विशेष रूप से विवाह जैसे महत्वपूर्ण विषय पर भी अपने स्पष्ट और सटीक विचार व्यक्त किए हैं।

विवाह में सुंदरता नहीं, कुल की गरिमा हो प्राथमिकता

चाणक्य नीति के पहले अध्याय में एक श्लोक आता है—

"वरयेत्कुलजां प्राज्ञो निरूपमपि कन्यकाम्।
रूपशीलविहीना वा कुलजाता न दुर्लभा।।"

इसका आशय है कि बुद्धिमान व्यक्ति को विवाह के समय सुंदरता की बजाय कुल और संस्कारों को महत्व देना चाहिए। चाणक्य के अनुसार, यदि किसी कन्या का जन्म एक अच्छे, सम्मानित और सभ्य परिवार में हुआ है, तो वह विवाह के लिए अधिक उपयुक्त मानी जाती है, भले ही वह अत्यधिक सुंदर न हो। इसके विपरीत, यदि कोई स्त्री अत्यंत सुंदर है लेकिन उसका जन्म निम्न कुल में हुआ है, तो चाणक्य ऐसे विवाह को टालने की सलाह देते हैं।

यह विचार न केवल पारिवारिक संतुलन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सामाजिक स्थायित्व को भी दर्शाता है। चाणक्य का मानना था कि एक अच्छे कुल में पली-बढ़ी स्त्री न केवल परिवार की गरिमा को बनाए रखती है, बल्कि वह जीवन के हर मोड़ पर अपने साथी का समर्थन भी सही ढंग से करती है।

गोत्र का मिलान क्यों है आवश्यक?

चाणक्य नीति में विवाह से पहले गोत्र के मेल को भी आवश्यक बताया गया है। उनके अनुसार, यदि विवाह एक ही गोत्र में होता है, तो उसे असंगत और अपवित्र माना जाता है। गोत्र संबंधी नियमों का पालन करना वैवाहिक जीवन में सामंजस्य बनाए रखने के लिए जरूरी बताया गया है। यदि यह संतुलन न हो, तो विवाह के बाद कई प्रकार की पारिवारिक और मानसिक समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।

गोत्र केवल एक सामाजिक व्यवस्था का हिस्सा नहीं है, बल्कि यह पीढ़ियों से चली आ रही जैविक और सांस्कृतिक समझ का प्रतीक है। चाणक्य के विचार आज के समय में वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी सामंजस्य रखते हैं, जहां आनुवंशिक रोगों और मानसिक तालमेल को लेकर चिंताएं व्यक्त की जाती हैं।

पति-पत्नी के बीच उम्र का संतुलन क्यों है जरूरी?

समाज में यह आम बात रही है कि विवाह के समय पुरुष की उम्र अधिक और स्त्री की कम होनी चाहिए। कई बार यह अंतर इतना अधिक होता है कि दोनों के सोचने, समझने और प्राथमिकताओं में बड़ा फर्क आ जाता है। चाणक्य इस सामाजिक चलन से सहमत नहीं थे।

उनका मानना था कि जब पति और पत्नी के बीच उम्र का बड़ा अंतर होता है, तो उनके जीवन के अनुभव, प्राथमिकताएं और सोचने का ढंग एक-दूसरे से मेल नहीं खाता। जब पत्नी जवान होती है तो वह छोटी-छोटी बातों को लेकर भावनात्मक होती है, वहीं एक बुजुर्ग पति अक्सर जीवन के गंभीर पहलुओं पर ध्यान देता है। इस सोच का टकराव वैवाहिक जीवन में अनबन और तनाव का कारण बन सकता है।

आचार्य चाणक्य के अनुसार, सुखी और संतुलित दांपत्य जीवन के लिए पति-पत्नी के बीच एक परिपक्व उम्र का संतुलन होना चाहिए। इससे न केवल विचारों का मेल बैठता है, बल्कि भावनात्मक समझदारी और आपसी सहयोग भी बेहतर होता है।


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