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Times News Hindi,Digital Desk : भारतीय शेयर बाजार में सूचीबद्ध कंपनियों के लिए जुलाई 2025 से लागू होने वाले नए नियम बड़ी चुनौती बनकर सामने आए हैं। बाजार नियामक SEBI (सेबी) ने 'रिलेटेड पार्टी ट्रांजेक्शन' (RPT) को लेकर नए सख्त नियम तैयार किए हैं, जिनका पालन नहीं करने पर कंपनियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। इन नियमों के पीछे उद्देश्य है वित्तीय लेन-देन में पारदर्शिता लाना और निवेशकों की सुरक्षा को बढ़ावा देना।

SEBI के नए नियमों के तहत अब किसी भी संबंधित पक्ष (रिलेटेड पार्टी) के साथ लेन-देन करने से पहले स्वतंत्र मूल्यांकन रिपोर्ट (Independent Valuation Report), निष्पक्षता राय (Fairness Opinion), आर्म्स लेंथ असेसमेंट और संबंधित पक्ष की वित्तीय जानकारी विस्तृत रूप से उपलब्ध करानी होगी। हर लेन-देन, चाहे वह कितना भी सरल क्यों न हो, पूरी जांच के बाद ही सार्वजनिक किया जा सकेगा।

इन नियमों से ऑडिट कमेटी और इंडिपेंडेंट डायरेक्टर्स की भूमिका पहले की तुलना में काफी महत्वपूर्ण और जवाबदेह हो जाएगी। अब उन्हें लेन-देन की गहराई से समीक्षा करनी होगी और उनकी मंजूरी के बाद ही सौदा आगे बढ़ सकेगा।

हालांकि, कंपनियां इसे अतिरिक्त बोझ मान रही हैं। विशेष रूप से मध्यम आकार और प्रमोटर-ड्रिवेन कंपनियों को, जिनके पास बड़ी लीगल या फाइनेंस टीम उपलब्ध नहीं होती, ये नियम काफी खर्चीले और जटिल साबित होंगे। सौदों में होने वाली संभावित देरी, अतिरिक्त खर्च और कानूनी अस्पष्टता से कारोबारियों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

'फेयर वैल्यू' और 'आर्म्स लेंथ' जैसे नियमों की स्पष्ट परिभाषा के अभाव में निर्णय लेना बेहद कठिन हो सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि हर लेन-देन के लिए अत्यधिक विस्तृत खुलासों की आवश्यकता से कंपनियों पर अतिरिक्त प्रशासनिक बोझ पड़ेगा।

साथ ही, इंडिपेंडेंट डायरेक्टर्स की बढ़ी जिम्मेदारी के कारण अब वे सीधे प्रक्रिया में शामिल होंगे। इससे ऐसे पदों पर अनुभवी प्रोफेशनल्स की दिलचस्पी कम हो सकती है।

इन नियमों से जॉइंट वेंचर, स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप, और ग्रुप स्ट्रक्चरिंग जैसे सौदों में भी देरी की आशंका है। साथ ही, पुराने RPT रिकॉर्ड रखने और ट्रैक करने की आवश्यकता भी बढ़ जाएगी। ₹10 करोड़ या कंपनी के कुल कारोबार के 10 प्रतिशत से अधिक के सौदों के लिए शेयरहोल्डर्स की मंजूरी जरूरी होगी, जिससे नियमों की जटिलता और बढ़ जाएगी।


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