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अमेरिका और ईरान के बीच न्यूक्लियर डील को लेकर बातचीत जारी है. 2018 में खुद ऐसे ही एक डील से अमेरिका को बाहर निकालने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने दूसरे कार्यकाल में एक नई डील की कोशिश में हैं.

1. अमेरिका-ईरान न्यूक्लियर डील की मौजूदा स्थिति

अमेरिका और ईरान के बीच न्यूक्लियर डील को लेकर एक बार फिर बातचीत जोर पकड़ रही है। यह वही समझौता है जिसे 2018 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने छोड़ दिया था। अब, ट्रंप अगर दोबारा सत्ता में आते हैं तो वह एक नई डील की ओर कदम बढ़ा सकते हैं। अमेरिका के विशेष दूत स्टीव विटकॉफ ने हाल ही में स्पष्ट कहा है कि अगर ईरान वाशिंगटन के साथ कोई डील करना चाहता है, तो उसे अपने न्यूक्लियर एनरिचमेंट प्रोग्राम को पूरी तरह से रोकना और समाप्त करना होगा। बदले में ईरान को अमेरिकी प्रतिबंधों से राहत दी जा सकती है।

ईरान फिलहाल यूरेनियम संवर्धन में काफी आगे निकल चुका है, जिससे पश्चिमी देशों की चिंता बढ़ गई है। अब सवाल है—भारत इस डील में क्यों रुचि ले रहा है? इसके पीछे कई रणनीतिक, आर्थिक और भू-राजनीतिक कारण हैं, जिनमें चाबहार बंदरगाह, कच्चे तेल का आयात और क्षेत्रीय स्थिरता जैसे फैक्टर शामिल हैं।

2. चाबहार बंदरगाह: भारत की रणनीतिक गेमचेंजर योजना

भारत की नजरें चाबहार बंदरगाह पर लंबे समय से टिकी हैं। यह प्रोजेक्ट सिर्फ एक बंदरगाह नहीं है, बल्कि भारत की "कनेक्ट सेंट्रल एशिया" नीति का एक अहम हिस्सा है। पाकिस्तान को बाइपास करते हुए अफगानिस्तान और सेंट्रल एशिया तक सीधा संपर्क बनाने का यह सुनहरा अवसर है। 2003 से ही भारत और ईरान ने इस प्रोजेक्ट की कल्पना की थी, लेकिन ईरान पर लगे अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों की वजह से प्रोजेक्ट आगे नहीं बढ़ सका।

2015 में जब अमेरिका और ईरान के बीच ओबामा प्रशासन के तहत न्यूक्लियर डील हुई, तो प्रतिबंधों में राहत मिली। उसी साल भारत ने ईरान के साथ इस बंदरगाह को लेकर एमओयू साइन किया। 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ईरान यात्रा के दौरान यह डील सक्रिय हुई। लेकिन 2018 में ट्रंप की अगुवाई में अमेरिका डील से बाहर हो गया, और प्रतिबंधों की वापसी ने फिर इस प्रोजेक्ट पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया।

इसके बावजूद भारत ने चाबहार पर काम जारी रखा, और अमेरिका ने इस पर कोई सीधा प्रतिबंध नहीं लगाया। 2024 में भारत ने ईरान के साथ चाबहार के संचालन को लेकर 10 साल का कॉन्ट्रैक्ट साइन किया, जो इस बात का संकेत है कि भारत इस प्रोजेक्ट को दीर्घकालिक दृष्टिकोण से देख रहा है।

3. भारत के लिए न्यूक्लियर डील का क्या मतलब है?

ईरान और अमेरिका के बीच होने वाली किसी भी न्यूक्लियर डील का भारत पर बड़ा असर पड़ सकता है। अगर अमेरिका ईरान पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों को हटा देता है, तो भारत चाबहार बंदरगाह को पूरी गति से विकसित कर सकता है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि भारत इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) के ज़रिए यूरोप, रूस और सेंट्रल एशिया से जुड़ सकेगा।

पूर्व राजदूत डी पी श्रीवास्तव, जिन्होंने ईरान में भारत का प्रतिनिधित्व किया और चाबहार परियोजना की बातचीत में शामिल थे, का मानना है कि अगर अमेरिका-ईरान संबंध सामान्य होते हैं, तो इससे भारत को चाबहार और INSTC में निवेश का रास्ता साफ मिलेगा। यह न सिर्फ भारत के भू-राजनीतिक प्रभाव को बढ़ाएगा, बल्कि उसे वैश्विक सप्लाई चेन में भी अहम स्थान देगा।

4. NSTC: भारत का व्यापारिक राजमार्ग

INSTC यानी इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर एक महत्वाकांक्षी परियोजना है, जो भारत को ईरान, अजरबैजान और रूस के ज़रिए यूरोप से जोड़ेगी। यह कॉरिडोर पारंपरिक स्वेज नहर मार्ग के मुकाबले सस्ता और तेज़ विकल्प साबित हो सकता है। चाबहार इसका एक अहम हिस्सा है। अगर अमेरिका-ईरान डील होती है और प्रतिबंध हटते हैं, तो INSTC को पूरा करने में कोई बड़ी रुकावट नहीं बचेगी।

विशेषज्ञ कमर आगा के मुताबिक, जब INSTC पूरी तरह कार्यरत हो जाएगा, तो इसका असर दूरगामी होगा—भारत से सेंट्रल एशिया, रूस और यूरोप तक का सीधा व्यापारिक मार्ग खुल जाएगा। यह न सिर्फ भारत की वैश्विक पहुंच को मजबूत करेगा, बल्कि ऊर्जा और व्यापार के मोर्चे पर चीन को टक्कर देने में भी मददगार होगा।

5. ईरान से सस्ता कच्चा तेल: भारत के लिए आर्थिक राहत

ईरान कभी भारत के सबसे बड़े तेल आपूर्तिकर्ताओं में से एक था। लेकिन अमेरिका के प्रतिबंधों की वजह से भारत को 2019 के बाद से ईरान से तेल आयात बंद करना पड़ा। इससे भारत को न सिर्फ महंगा तेल खरीदना पड़ा, बल्कि ईरान जैसे रणनीतिक साझेदार से दूरी भी बनानी पड़ी।

अगर न्यूक्लियर डील के जरिए प्रतिबंध हटते हैं, तो भारत फिर से ईरान से सस्ता तेल आयात कर सकेगा। ईरान से आने वाला तेल ट्रांसपोर्टेशन के लिहाज से भी सस्ता पड़ता है क्योंकि दूरी कम है और मार्ग सुरक्षित हैं। यह भारत के लिए आर्थिक रूप से लाभदायक सौदा होगा।

कमर आगा के मुताबिक, भारत के लिए ईरान से तेल आयात न केवल आर्थिक रूप से लाभदायक है, बल्कि यह ऊर्जा सुरक्षा की दिशा में भी एक अहम कदम होगा। और भारत की रणनीति हमेशा से रही है कि वह अपने ऊर्जा स्रोतों को विविध बनाए।


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