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Navratri 2205 date : नवरात्रि हिन्दू धर्म का एक अत्यंत पवित्र और शक्ति की उपासना को समर्पित पर्व है। यह पर्व पूरे देश में बड़े श्रद्धा और भक्ति भाव से मनाया जाता है। साल में कुल चार बार नवरात्रि आती है, लेकिन अधिकांश लोग केवल चैत्र और शारदीय नवरात्रि को ही जानते हैं। इसके अतिरिक्त दो गुप्त नवरात्रि भी होती हैं, जो विशेष रूप से तांत्रिक साधकों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। आइए विस्तार से समझते हैं कि चैत्र, गुप्त और शारदीय नवरात्रि में क्या प्रमुख अंतर होते हैं और किसका धार्मिक दृष्टि से क्या महत्व है।

चैत्र नवरात्रि: नववर्ष की शुरुआत और श्रीराम जन्म

चैत्र नवरात्रि हर साल वसंत ऋतु के आगमन के साथ चैत्र महीने में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक मनाई जाती है। यह नवरात्रि न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी विशेष मानी जाती है क्योंकि इसी दिन से हिन्दू नववर्ष की शुरुआत होती है।

इस नवरात्रि का समापन रामनवमी के दिन होता है, जिसे भगवान श्रीराम के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी को अयोध्या में भगवान राम का जन्म हुआ था।

इस दौरान मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा के साथ-साथ भगवान विष्णु और राम की उपासना भी की जाती है। साधक इस समय विशेष ध्यान, योग और साधना में लीन रहते हैं क्योंकि यह समय आत्मिक उन्नति के लिए श्रेष्ठ माना जाता है।

चैत्र नवरात्रि का महत्व केवल पूजा तक सीमित नहीं है बल्कि यह जीवन में नयी शुरुआत, सकारात्मकता और आध्यात्मिक जागृति का प्रतीक भी मानी जाती है। जो लोग मानसिक शांति, आत्मिक बल और सिद्धि की कामना करते हैं, उनके लिए यह नवरात्रि एक उत्तम अवसर है।

शारदीय नवरात्रि: शक्ति की उपासना और विजय उत्सव

शारदीय नवरात्रि साल के उत्तरार्ध में आश्विन माह में आती है और इसे सबसे प्रसिद्ध तथा भव्य रूप में मनाया जाता है। इसका समापन महानवमी और विजयादशमी (दशहरा) के पर्व के साथ होता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, दशहरे के दिन ही मां दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था और भगवान राम ने रावण का अंत किया था। इसलिए यह पर्व बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक बन गया है।

इस नवरात्रि में विशेष रूप से मां दुर्गा के नौ रूपों की भक्ति और पूजा की जाती है। पूजा विधि में सात्विक आहार, व्रत, भजन-कीर्तन, और रात्रि के समय गरबा और डांडिया जैसे उत्सव शामिल होते हैं।

शारदीय नवरात्रि न केवल धार्मिक रूप से बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी देश के कई हिस्सों में बड़े उत्साह से मनाई जाती है। विशेष रूप से गुजरात और पश्चिम बंगाल में इसका अत्यधिक महत्व है। बंगाल में इसे दुर्गा पूजा के रूप में और गुजरात में नवरात्रि उत्सव के रूप में मनाया जाता है।

यह पर्व व्यक्ति की सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति, उन्नति और मनोकामनाओं की सिद्धि के लिए उपयुक्त माना जाता है। साथ ही यह काल मौसम परिवर्तन का भी होता है, जहां शरद ऋतु की शुरुआत होती है।

गुप्त नवरात्रि: रहस्यमय साधना और तांत्रिक महत्व

गुप्त नवरात्रि, जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, एक गुप्त साधना काल होता है, जिसे आम जनता नहीं बल्कि विशेष साधक वर्ग ही मनाते हैं। यह नवरात्रि साल में दो बार आती है – एक माघ मास और दूसरी आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष में। ये नवरात्रि मुख्यतः तांत्रिक साधना, गुप्त विद्याओं की प्राप्ति, और विशेष आध्यात्मिक प्रयोगों के लिए होती है।

गुप्त नवरात्रि में नौ नहीं बल्कि दस महाविद्याओं की पूजा की जाती है। ये देवी स्वरूप हैं:

मां कालिका

मां तारा

त्रिपुर सुंदरी

भुवनेश्वरी

छिन्नमस्ता

त्रिपुर भैरवी

धूमावती

बगलामुखी

मातंगी

कमला देवी