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डोनाल्ड ट्रंप को परंपराएं तोड़ना हमेशा से पसंद रहा है। 2017 में जब वह पहली बार अमेरिकी राष्ट्रपति बने, तब भी उन्होंने परंपरा को नजरअंदाज करते हुए अपने पहले विदेश दौरे के लिए कनाडा या मैक्सिको के बजाय सीधे सऊदी अरब को चुना। ये वही ट्रंप हैं, जिनसे पहले ओबामा, क्लिंटन और बुश जैसे पांच अमेरिकी राष्ट्रपति अपने पहले दौरे पर पड़ोसी देशों को प्राथमिकता देते रहे। लेकिन ट्रंप का रुख हमेशा कुछ अलग रहा है।

और अब जब ट्रंप दोबारा राष्ट्रपति बन चुके हैं, तो एक बार फिर उन्होंने पहला कदम सऊदी अरब की ओर बढ़ाया है। सवाल ये है: आखिर सऊदी में ऐसा क्या है, जो ट्रंप को बार-बार अपनी ओर खींच लाता है? क्या ये सिर्फ मोहम्मद बिन सलमान (एमबीएस) से दोस्ती का मामला है, या फिर ईरान पर दबाव बनाने की रणनीति? या शायद अरब देशों के पैसे का आकर्षण?

चलिए, इस पूरे सऊदी दौरे को एक-एक करके समझते हैं।

ट्रंप का सऊदी प्लान: निवेश, रणनीति और दबदबे की राजनीति

एक अमेरिकी मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रंप मई के मध्य में सऊदी अरब का दौरा करने की योजना बना रहे हैं। लेकिन ये कोई साधारण दौरा नहीं होगा। इस समय इजरायल और हमास के बीच गाजा पट्टी में संघर्ष जारी है। ट्रंप की योजना इस समय सऊदी अरब जाने की इसलिए भी अहम मानी जा रही है क्योंकि उनके इस दौरे के साथ ही कुछ अहम समझौतों और घोषणाओं की उम्मीद की जा रही है।

6 मार्च को ट्रंप ने एक बयान में कहा कि वह सऊदी तभी जाएंगे जब सऊदी अरब अमेरिकी कंपनियों में एक खरब डॉलर का निवेश करेगा। और सऊदी अरब ने इस शर्त को स्वीकार कर लिया है। पिछली बार जब ट्रंप राष्ट्रपति थे और सऊदी दौरे पर गए थे, तब वहां से 450 अरब डॉलर के निवेश का वादा मिला था। इस बार यह आंकड़ा दोगुने से भी ज्यादा हो गया है।

यह निवेश न केवल अमेरिका की अर्थव्यवस्था के लिए फायदेमंद हो सकता है, बल्कि ट्रंप की घरेलू राजनीति के लिए भी एक बड़ा तुरुप का पत्ता साबित हो सकता है। साथ ही, इस दौरे में खाड़ी देशों के साथ संबंध मजबूत करने और मध्य-पूर्व में शांति स्थापना को लेकर बातचीत की संभावनाएं भी जुड़ी हैं।

लेकिन सवाल यही है—क्या ये दौरा सिर्फ पैसे के लिए है या फिर इसमें कुछ और बड़ा चल रहा है?

सऊदी का बदलता रोल: अब सिर्फ तेल नहीं, शांति का भी केंद्र

आज का सऊदी अरब केवल तेल का धनी देश नहीं रहा, बल्कि वह अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में एक बड़ा खिलाड़ी बनता जा रहा है। हाल ही में रूस और यूक्रेन के बीच शांति वार्ता की एक महत्वपूर्ण बैठक सऊदी की राजधानी रियाद में हुई थी। इसमें अमेरिका, रूस और यूक्रेन के उच्च अधिकारियों ने हिस्सा लिया, और इसके नतीजेस्वरूप 30 दिनों के लिए एनर्जी इंफ्रास्ट्रक्चर पर हमले रोक दिए गए।

इस घटनाक्रम से साफ होता है कि सऊदी अब एक ऐसे मंच के रूप में उभर रहा है, जहां पर बड़ी शक्तियां बातचीत के लिए तैयार होती हैं। यह बदलाव सिर्फ सऊदी की अंतरराष्ट्रीय छवि को बेहतर नहीं बना रहा, बल्कि ट्रंप जैसे नेताओं के लिए भी यह एक मौका है कि वे खुद को एक ग्लोबल पीसमेकर के रूप में पेश कर सकें।

और यह वही जगह है, जहां ट्रंप को अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी छवि सुधारने का मौका मिल सकता है। खासकर ऐसे समय में जब अमेरिका की विदेश नीति को लेकर कई आलोचनाएं हो रही हैं।

ट्रंप की परंपरा तोड़ने की शैली: कनाडा छोड़ सऊदी का रुख क्यों?

डोनाल्ड ट्रंप की राजनीतिक शैली ही कुछ अलग है। जहां अमेरिकी राष्ट्रपतियों की परंपरा रही है कि वे अपने पहले विदेश दौरे में पड़ोसी देशों—कनाडा या मैक्सिको—का चुनाव करते हैं, वहीं ट्रंप 2017 में राष्ट्रपति बनने के बाद सीधे सऊदी पहुंचे थे। और इस बार भी वही कहानी दोहराई जा रही है।

2021 में जब जो बाइडेन राष्ट्रपति बने थे, उन्होंने यूरोप को प्राथमिकता दी, NATO के नेताओं से मिले। लेकिन ट्रंप की सोच बिल्कुल अलग रही है। वे मानते हैं कि सऊदी अरब से उनके व्यक्तिगत संबंध, व्यापारिक फायदे और रणनीतिक समर्थन उन्हें अधिक मजबूती देते हैं। इसीलिए ट्रंप बार-बार सऊदी को प्राथमिकता देते हैं, भले ही वो परंपराओं के खिलाफ क्यों न हो।

ट्रंप और एमबीएस: सियासत की दोस्ती या दोस्ती की सियासत?

ट्रंप और सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (एमबीएस) की दोस्ती अब कोई रहस्य नहीं है। 20 जनवरी को जब ट्रंप ने दूसरी बार राष्ट्रपति पद की शपथ ली, उसी हफ्ते उन्होंने पहला फोन एमबीएस को किया। यह एक संकेत था कि ट्रंप किसे अपनी प्राथमिकता दे रहे हैं।

दोनों नेताओं की सोच और दृष्टिकोण में कई समानताएं हैं। ट्रंप ने एमबीएस से कहा कि अमेरिका में निवेश के बिना वह सऊदी नहीं आएंगे, और एमबीएस ने 600 अरब डॉलर के निवेश की हामी भर दी। यह सिर्फ व्यापारिक समझौता नहीं है, बल्कि ट्रंप के लिए एक राजनैतिक संदेश भी है—वह वही करते हैं जो उन्हें फायदेमंद लगे, चाहे वह वैश्विक समीकरणों को पलट दे।

2018 में जब जमाल खशोज्जी की हत्या को लेकर पूरी दुनिया ने एमबीएस की आलोचना की थी, तब ट्रंप ही थे जिन्होंने उनका समर्थन किया था। जबकि बाइडेन ने सऊदी से दूरी बना ली थी, ट्रंप ने अपना साथ बनाए रखा।

यह रिश्ता केवल दोस्ती नहीं, बल्कि रणनीतिक साझेदारी की नींव बन चुका है।

ईरान का एंगल: सऊदी दौरे के पीछे छिपा बड़ा गेम

मध्य-पूर्व की राजनीति में ईरान सबसे अहम और संवेदनशील मुद्दा है। ट्रंप की विदेश नीति हमेशा से ईरान के खिलाफ सख्त रही है। उन्होंने ईरान समर्थित हूती विद्रोहियों को आतंकी सूची में डाला, ईरानी तेल पर सख्त प्रतिबंध लगाए और परमाणु डील से बाहर निकलने का फैसला किया।

ट्रंप चाहते हैं कि सऊदी अरब इस मोर्चे पर उनके साथ खड़ा हो, और सऊदी खुद भी ईरान के बढ़ते प्रभाव से परेशान है। इसीलिए दोनों देशों के बीच इस मुद्दे पर गहरी सहमति है।

ट्रंप का सऊदी दौरा इसी रणनीति का हिस्सा हो सकता है। वह वहां जाकर एक कड़ा संदेश देना चाहते हैं कि अमेरिका और सऊदी मिलकर ईरान के परमाणु प्रोग्राम और क्षेत्रीय विस्तारवाद को रोकने के लिए तैयार हैं।