
दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा का तबादला इलाहाबाद हाई कोर्ट कर दिया गया है। इस संबंध में भारत सरकार के विधि मंत्रालय ने शुक्रवार को एक आधिकारिक अधिसूचना जारी की। यह स्थानांतरण सुप्रीम कोर्ट के कॉलिजियम की सिफारिश के आधार पर किया गया है।
हालांकि, जस्टिस वर्मा का यह तबादला विवादों से घिरा हुआ है। हाल ही में उनके सरकारी आवास में आग लगने की घटना ने पूरे मामले को चर्चा में ला दिया था। आग के बाद जब जांच शुरू हुई, तो उनके स्टोर रूम से जली हुई नकदी के बड़े-बड़े बंडल बरामद हुए, जिससे स्थिति और जटिल हो गई।
न्यायिक कार्यों से हटाए गए जस्टिस वर्मा
आवास में आग और नकदी मिलने की घटना के बाद दिल्ली हाई कोर्ट ने जस्टिस वर्मा से उनके न्यायिक कार्य अस्थायी रूप से वापस ले लिए थे। इसके बाद उनके तबादले की प्रक्रिया तेज हो गई और अब उन्हें इलाहाबाद हाई कोर्ट में नियुक्त किया गया है।
इलाहाबाद में वकीलों का विरोध
जस्टिस वर्मा के तबादले को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट में वकील खासे नाराज हैं। वे लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं और बीते चार दिनों से हड़ताल पर हैं। हाई कोर्ट बार एसोसिएशन इस प्रदर्शन की अगुवाई कर रही है। इस वजह से पिछले कुछ दिनों से अदालत का सामान्य कामकाज पूरी तरह से ठप पड़ा है। फोटो आडेंटिफिकेशन सेंटर भी बंद है, जिससे नए मुकदमे दाखिल नहीं हो पा रहे।
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सफाई
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने इस सप्ताह की शुरुआत में जस्टिस वर्मा के तबादले की सिफारिश की थी। कॉलेजियम ने स्पष्ट किया कि यह निर्णय उनके आवास में आग लगने और नकदी मिलने के मामले में शुरू की गई आंतरिक जांच से अलग है। यानी तबादला एक सामान्य प्रशासनिक प्रक्रिया के तहत किया गया है, न कि किसी दंडात्मक कार्रवाई के रूप में।
प्रयागराज से है जस्टिस वर्मा का गहरा नाता
दिलचस्प बात यह है कि जस्टिस यशवंत वर्मा मूल रूप से प्रयागराज (पुराना नाम इलाहाबाद) के ही निवासी हैं। उन्होंने यहीं से अपने न्यायिक करियर की शुरुआत की थी और बाद में उन्हें दिल्ली हाई कोर्ट भेजा गया था। अब एक बार फिर उनका स्थानांतरण उनके अपने गृह राज्य के हाई कोर्ट में किया गया है।
इस पूरी स्थिति ने न्यायपालिका और प्रशासन के बीच एक नया विमर्श खड़ा कर दिया है कि किस तरह विवादों से घिरी नियुक्तियों और तबादलों को पारदर्शी ढंग से संभाला जाना चाहिए।