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भारतीय संविधान नागरिकों को न्याय प्राप्त करने का अधिकार देता है। संविधान की प्रस्तावना में भी न्याय सुनिश्चित करने की बात कही गई है, लेकिन क्या वास्तव में यह अधिकार सभी नागरिकों को समान रूप से मिल पा रहा है? न्यायालयों में वर्षों से लंबित मामलों की संख्या यह दर्शाती है कि त्वरित न्याय की उम्मीद अभी भी अधूरी है।

देश की अदालतों में बढ़ते मामलों के बोझ के पीछे कई कारण हैं, लेकिन सबसे प्रमुख कारण न्यायाधीशों की भारी कमी है। न्यायालयों में लंबित मुकदमों की बढ़ती संख्या केवल एक कानूनी समस्या नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और आर्थिक स्तर पर भी व्यापक प्रभाव डालती है।

न्याय की स्थिति और बढ़ते लंबित मुकदमे

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 नागरिकों को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा देता है। उच्चतम न्यायालय ने इस अनुच्छेद के तहत निष्पक्ष और त्वरित सुनवाई के अधिकार को भी शामिल किया है। इसके बावजूद, न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।

  • अकेले इलाहाबाद उच्च न्यायालय में 10 लाख से अधिक मुकदमे लंबित हैं।
  • अगर फैसले जल्दी और बिना देरी के किए जाएं, तो भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 1-2% की वृद्धि संभव हो सकती है।
  • न्यायालयों में पर्याप्त न्यायाधीशों की नियुक्ति न होने के कारण स्थिति और गंभीर होती जा रही है।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की कमी

इलाहाबाद उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों के लिए कुल 160 पद स्वीकृत हैं, लेकिन वर्तमान में केवल 79 न्यायाधीश ही कार्यरत हैं। यह संख्या स्वीकृत पदों के आधे से भी कम है।

इस स्थिति को देखते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन और अवध बार एसोसिएशन ने 25 फरवरी 2025 को अपने अधिवक्ता सदस्यों से न्यायिक कार्य से विरत रहने का आह्वान किया। इसका उद्देश्य उच्चतम न्यायालय, कालेजियम और विधि मंत्रालय का ध्यान इस समस्या की ओर आकर्षित करना था, ताकि रिक्त पदों पर नियुक्ति शीघ्र हो सके।

भारत में न्यायाधीशों की संख्या और अन्य देशों से तुलना

न्यायाधीशों की कमी के कारण लंबित मुकदमों की संख्या लगातार बढ़ रही है। विधि मंत्रालय के अनुसार, भारत में प्रति 10 लाख जनसंख्या पर केवल 21 न्यायाधीश हैं, जबकि:

  • अमेरिका में प्रति 10 लाख जनसंख्या पर 151 न्यायाधीश हैं।
  • चीन में यह संख्या 170 न्यायाधीश प्रति 10 लाख जनसंख्या है।

1987 में विधि आयोग ने सुझाव दिया था कि प्रति 10 लाख जनसंख्या पर 50 न्यायाधीशों की नियुक्ति होनी चाहिए, लेकिन इस सिफारिश को अब तक लागू नहीं किया गया है।

उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या का इतिहास

संविधान के अनुच्छेद 124 के तहत उच्चतम न्यायालय को अपनी सदस्यों की संख्या बढ़ाने का अधिकार है। इसके तहत समय-समय पर न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाई गई, लेकिन लंबित मामलों को देखते हुए यह अभी भी अपर्याप्त है।

  • 1950 - 8 न्यायाधीश
  • 1956 - 11 न्यायाधीश
  • 1960 - 14 न्यायाधीश
  • 1978 - 18 न्यायाधीश
  • 1986 - 26 न्यायाधीश
  • 2009 - 31 न्यायाधीश
  • 2019 - 34 न्यायाधीश

हालांकि, जनवरी 2025 तक दो न्यायाधीशों के सेवानिवृत्त होने के बाद उच्चतम न्यायालय में अब भी 2 पद रिक्त हैं।

उच्च न्यायालयों और अधीनस्थ न्यायालयों में पद रिक्ति

भारत के 25 उच्च न्यायालयों और अधीनस्थ न्यायालयों में न्यायाधीशों की भारी कमी है।

  • उच्च न्यायालयों में कुल स्वीकृत पद: 1,114
  • रिक्त पदों की संख्या: 336 (कुल पदों का 30%)
  • छह राज्यों में 50% पद रिक्त – उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, पटना, राजस्थान, ओडिशा और दिल्ली
  • अधीनस्थ न्यायालयों में कुल स्वीकृत पद: 24,018
  • रिक्त पदों की संख्या: 5,146 (कुल पदों का 21%)

बिहार, हरियाणा और झारखंड जैसे राज्यों में यह स्थिति और भी गंभीर है।

तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति और न्यायिक सुधार

लंबित मुकदमों को कम करने के लिए उच्चतम न्यायालय ने तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति को लेकर कुछ नियमों में बदलाव किया है।

  • यदि किसी राज्य के उच्च न्यायालय में 20% से अधिक पद रिक्त हैं, तो वहां तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति की जा सकती है।
  • तदर्थ न्यायाधीशों की संख्या उच्च न्यायालय की स्वीकृत न्यायिक शक्ति के 10% से अधिक नहीं होनी चाहिए।
  • इन न्यायाधीशों को आपराधिक अपीलों की सुनवाई के लिए विशेष खंडपीठ में शामिल किया जा सकता है।

विचाराधीन कैदियों की स्थिति और न्याय में देरी

भारत में लाखों विचाराधीन कैदी त्वरित न्याय की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

  • कई कैदी सुनवाई पूरी होने से पहले ही जेल में दम तोड़ देते हैं।
  • यह स्थिति संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है, जो जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार प्रदान करता है।
  • न्याय मिलने में देरी का मतलब सिर्फ कानूनी समस्या नहीं, बल्कि यह मानवाधिकारों के उल्लंघन का भी मामला है।

न्यायपालिका में सुधार के लिए संभावित समाधान

इस गंभीर समस्या का समाधान केवल न्यायपालिका में सुधार और न्यायाधीशों की शीघ्र नियुक्ति से ही संभव है।

  1. न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाना – विधि आयोग की सिफारिश के अनुसार प्रति 10 लाख जनसंख्या पर 50 न्यायाधीश नियुक्त किए जाएं।
  2. न्यायिक प्रक्रियाओं का डिजिटलीकरण – सुनवाई को तेज़ करने के लिए ई-कोर्ट सिस्टम को बढ़ावा देना।
  3. तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति – लंबित मुकदमों की संख्या को कम करने के लिए यह एक कारगर उपाय हो सकता है।
  4. आल्टरनेटिव डिस्प्यूट रिजोल्यूशन (ADR) सिस्टम – मध्यस्थता, पंचाट और समझौते के ज़रिए मुकदमों को हल करना।
  5. न्यायपालिका और विधायिका के बीच समन्वय – नियुक्ति प्रक्रिया को तेज़ करने के लिए सरकार और न्यायपालिका को मिलकर काम करना होगा।