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म्यांमार में शुक्रवार, 28 मार्च को ज़मीन इतनी जोर से कांपी कि लोग दहशत में घरों से बाहर निकल आए। एक के बाद एक दो शक्तिशाली भूकंप—पहला 7.5 तीव्रता का और दूसरा 7.0 तीव्रता का—ने पूरे देश को हिला कर रख दिया। सिर्फ म्यांमार ही नहीं, इसके असर से पड़ोसी देश थाईलैंड तक कांप उठा। बैंकॉक में तो हालात और भी भयावह हो गए, जहां एक निर्माणाधीन गगनचुंबी इमारत भरभराकर गिर गई, और दर्जनों मज़दूर मलबे में फंस गए। दोनों देशों ने आपातकाल घोषित कर दिया है, और अब तक कम से कम 20 लोगों के मारे जाने की पुष्टि हो चुकी है।

अब सवाल ये उठता है कि इतने जोरदार भूकंप आखिर म्यांमार में क्यों आए?

दरअसल, इसके लिए हमें धरती की अंदरूनी संरचना को समझना होगा। हमारी धरती की ऊपरी सतह, जिसे क्रस्ट और ऊपरी मेंटल कहा जाता है, कुल मिलाकर 15 बड़ी और छोटी टेक्टोनिक प्लेटों से बनी है। ये प्लेटें स्थिर नहीं होतीं, बल्कि ये बहुत धीरे-धीरे हरकत करती रहती हैं। जब ये प्लेटें आपस में टकराती हैं या रगड़ खाती हैं, तो जमीन में तनाव पैदा होता है। ये तनाव जब एकदम से बाहर निकलता है, तो धरती कांपने लगती है—इसे ही हम भूकंप कहते हैं।

म्यांमार के नीचे जो प्लेट्स हैं, वो भूकंप के लिहाज़ से बहुत एक्टिव मानी जाती हैं। खासकर 'सैगिंग फॉल्ट' नाम की एक बड़ी टेक्टोनिक लाइन म्यांमार के ठीक नीचे से गुजरती है। ये फॉल्ट भारतीय प्लेट और बर्मा माइक्रोप्लेट के बीच है। यानी यह इलाका प्लेटों की भिड़ंत का मैदान है। यही वजह है कि म्यांमार में अक्सर भूकंप आते रहते हैं। सैगिंग फॉल्ट करीब 1,200 किलोमीटर लंबा है और इतिहास में कई विनाशकारी भूकंप इसी के कारण हुए हैं—जैसे 1946 में आया 7.7 तीव्रता का और 2012 में 6.8 तीव्रता वाला भूकंप।

वैज्ञानिकों का मानना है कि इस फॉल्ट में प्लेटें हर साल करीब 11 से 18 मिलीमीटर तक खिसकती हैं। समय के साथ इन पर तनाव बढ़ता है, और जब ये तनाव अपनी सीमा पार कर जाता है, तो ज़मीन अचानक फट पड़ती है। यही भूकंप का कारण बनता है।

अब थाईलैंड की बात करें तो वहां कोई बड़ा फॉल्ट नहीं है, लेकिन म्यांमार की सीमा से सटे होने की वजह से वहां भी भूकंप के झटके महसूस होते हैं। इस बार भी ऐसा ही हुआ, और इसका असर राजधानी बैंकॉक तक देखा गया।


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