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Shani Stotra Path : हिंदू धर्म में शनिवार का दिन विशेष रूप से न्याय के देवता शनिदेव के नाम समर्पित है। शनिदेव को ग्रहों में न्यायाधीश के रूप में पूजा जाता है। शनिदेव का प्रभाव जीवन में बड़े बदलाव लाने के लिए जाना जाता है, जिनमें साढ़ेसाती और ढैय्या जैसे समय होते हैं। इन अवधियों के दौरान व्यक्ति के जीवन में कई प्रकार की परेशानियाँ आ सकती हैं, लेकिन यदि शनिदेव की उपासना सही तरीके से की जाए, तो इन प्रभावों से बचाव संभव हो सकता है। इस संदर्भ में, दशरथकृत शनि स्तोत्र का पाठ विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है।

यह स्तोत्र शनिदेव की पूजा का एक महत्वपूर्ण अंग है, जिसे शनिवार के दिन विशेष रूप से किया जाता है। माना जाता है कि इस स्तोत्र के नियमित पाठ से शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है, और उनके कुप्रभाव से सुरक्षा मिलती है। आइए जानते हैं कि दशरथकृत शनि स्तोत्र का पाठ किस प्रकार करना चाहिए और इसे किस विधि से करें।

दशरथकृत शनि स्तोत्र का पाठ कैसे करें

शनिवार का दिन शनिदेव के पूजा के लिए सर्वोत्तम माना गया है। इस दिन का महत्व बढ़ जाता है, यदि इस दिन दशरथकृत शनि स्तोत्र का पाठ किया जाए।

स्नान और शुद्धता का ध्यान रखें : शनिवार को सबसे पहले आपको स्नान करके शुद्ध हो जाना चाहिए। इसके बाद, साफ और शुभ रंग के वस्त्र पहनें।

पूजा स्थल तैयार करें : एक काले रंग का कपड़ा बिछाकर शनि देव की मूर्ति या चित्र को वहां रखें। आप चाहें तो शनि देव का चित्र अथवा प्रतिमा रखें, जो पूजा में उपयोग की जाती है।

धूप, अगरबत्ती और दीपक जलाएं : शनि देव के चित्र या मूर्ति के पास धूप या अगरबत्ती जलाएं। इसके अलावा, सरसों के तेल का दीपक जलाना शुभ माना जाता है। तेल का दीपक शनि देव की पूजा का अभिन्न हिस्सा होता है।

ध्यान और शांति से पाठ करें: अब शांति से बैठकर, पूरी एकाग्रता के साथ दशरथकृत शनि स्तोत्र का पाठ करें। इसे विशेष ध्यान और श्रद्धा से मन, वचन और क्रिया से पढ़ें।

दशरथकृत शनि स्तोत्र (Shani Stotra)

यह शनि स्तोत्र विशेष रूप से दशरथजी द्वारा रचित है और इसमें शनिदेव के विभिन्न रूपों और शक्तियों का वर्णन किया गया है। इस स्तोत्र का पाठ करने से शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है और उनके कुप्रभाव से बचाव मिलता है।

स्तोत्र का पाठ:

नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम:।।

नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।

नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते।।

नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम:।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।

नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च।।

अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निरिस्त्रणाय नमोऽस्तुते।।

तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:।।

ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।।

शनि देव की आरती (Shani Aarti)

इस स्तोत्र के साथ-साथ शनिदेव की आरती का भी विशेष महत्व है। आरती का गायन शनिदेव की उपासना को और भी प्रभावी बना सकता है। शनि देव की आरती को गाने से जीवन में शांति, समृद्धि और शक्ति का वास होता है।

आरती का पाठ :

जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।
सूर्य पुत्र प्रभु छाया महतारी॥
जय जय श्री शनि देव….

श्याम अंग वक्र-दृ‍ष्टि चतुर्भुजा धारी।
नी लाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥
जय जय श्री शनि देव….

क्रीट मुकुट शीश राजित दिपत है लिलारी।
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी॥
जय जय श्री शनि देव….

मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी।
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी॥
जय जय श्री शनि देव….

देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी।
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी॥
जय जय श्री शनि देव भक्तन हितकारी॥