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अमेरिका और चीन के बीच लंबे समय से चल रही टैरिफ वॉर में एक नया मोड़ आ गया है। चीन ने अमेरिकी उत्पादों पर 34 प्रतिशत आयात शुल्क लगाने का एलान किया है। यह कदम सीधे तौर पर अमेरिका की ओर से लगाए गए भारी टैरिफ के जवाब में उठाया गया है। इस घोषणा के बाद वैश्विक व्यापारिक परिदृश्य में हलचल तेज हो गई है और दुनिया भर के निवेशक सतर्क हो गए हैं।

चीन ने स्पष्ट कर दिया है कि यह निर्णय केवल प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि अपनी अर्थव्यवस्था की सुरक्षा और अमेरिका की आक्रामक व्यापार नीति के खिलाफ एक रणनीतिक कदम है। इसका असर न केवल अमेरिका और चीन के बीच व्यापार पर पड़ेगा, बल्कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला और निवेश बाजार भी इससे प्रभावित होंगे।

ट्रंप का पलटवार: चीन ने गलत दांव चला

पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन के इस कदम पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर पोस्ट करते हुए कहा, “चीन ने गलत खेला, वे घबरा गए हैं। ये कुछ ऐसा है जिसे वे सहन नहीं कर सकते।” उन्होंने हमेशा की तरह अपनी बात को जोरदार तरीके से प्रस्तुत किया और संकेत दिया कि अमेरिका पीछे हटने वाला नहीं है।

ट्रंप ने यह भी कहा कि यह समय अमीर बनने का बेहतरीन मौका है और अमेरिका की अर्थव्यवस्था इतनी मजबूत है कि विदेशी कंपनियों को मजबूरन अमेरिकी धरती पर उत्पादन शुरू करना पड़ेगा। उनका मानना है कि अमेरिकी टैरिफ नीति विदेशी उद्योगों को झुकने पर मजबूर करेगी।

शेयर बाजारों पर असर: निवेशकों को बड़ा नुकसान

टैरिफ वॉर के इस ताजे घटनाक्रम का सीधा असर दुनिया भर के शेयर बाजारों पर देखने को मिला है। अमेरिका के शेयर बाजार में लगातार गिरावट देखी जा रही है और निवेशकों को अरबों डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा है। इस स्थिति ने निवेशकों के मन में अनिश्चितता और डर पैदा कर दिया है।

अमेरिकी बाजारों में गिरावट का सीधा संबंध व्यापार युद्ध की बढ़ती गंभीरता और वैश्विक मंदी की आशंका से है। जब दो सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्थाएं आमने-सामने हों, तो इसका प्रभाव केवल उनके द्विपक्षीय व्यापार पर ही नहीं, बल्कि वैश्विक आर्थिक स्थिरता पर भी पड़ता है।

चीन की चेतावनी: WTO में शिकायत और रणनीतिक संसाधनों पर नियंत्रण

चीन ने केवल टैरिफ लगाने तक खुद को सीमित नहीं रखा, बल्कि आगे की योजना भी साफ कर दी है। चीन ने कहा है कि वह अमेरिका के खिलाफ वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन (WTO) में आधिकारिक शिकायत दर्ज करेगा। इसके साथ ही उसने यह भी संकेत दिया कि वह अमेरिका को उच्च तकनीक वाले क्षेत्रों जैसे चिकित्सा और इलेक्ट्रॉनिक्स में उपयोग होने वाले दुर्लभ पृथ्वी तत्वों (rare earth materials) की आपूर्ति सीमित कर सकता है।

यह रणनीति चीन की ओर से एक बड़ा संदेश है। यह दिखाता है कि वह न केवल कूटनीतिक स्तर पर बल्कि आर्थिक और संसाधन नियंत्रण के स्तर पर भी अमेरिका पर दबाव बना सकता है। इस कदम से अमेरिका की तकनीकी कंपनियों को बड़ा झटका लग सकता है जो इन संसाधनों पर काफी हद तक निर्भर हैं।

अन्य देशों की प्रतिक्रिया: वैश्विक व्यापार में नई दरारें

अमेरिका और चीन के इस टैरिफ युद्ध का असर अब दूसरे देशों पर भी दिखने लगा है। फ्रांस और जर्मनी ने संकेत दिए हैं कि यूरोपीय संघ अमेरिकी टेक कंपनियों पर कर लगाकर जवाबी कार्रवाई कर सकता है। वहीं, कनाडा ने भी तुरंत अमेरिकी आयात पर शुल्क लगाने की घोषणा कर दी है।

दूसरी ओर, कई बड़े अमेरिकी साझेदार देश इस संघर्ष से खुद को अलग करने की कोशिश में हैं, क्योंकि उन्हें वैश्विक मंदी की चिंता सताने लगी है। बढ़ते अंतरराष्ट्रीय तनाव और अनिश्चितता ने व्यापारिक माहौल को काफी प्रभावित किया है, जिससे निवेशक और कंपनियां अपने फैसले को लेकर असमंजस में हैं।

'लिबरेशन डे' का ऐलान: ट्रंप का सबसे बड़ा टैरिफ हमला

व्हाइट हाउस के रोज गार्डन में दिए गए एक भाषण में डोनाल्ड ट्रंप ने इसे "लिबरेशन डे" करार दिया और चीन तथा यूरोपीय संघ पर सबसे कठोर टैरिफ लगाने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि दशकों से अमेरिका का शोषण हुआ है, और अब समय आ गया है कि देश अपने हितों की रक्षा के लिए सख्त कदम उठाए।

ट्रंप ने चीन के अलावा यूरोपीय संघ, जापान और भारत जैसे प्रमुख सहयोगी देशों पर भी भारी शुल्क लगाया। चीन पर 34%, यूरोपीय संघ पर 20%, जापान पर 24% और भारत पर 26% टैरिफ लगाकर यह संदेश दिया कि अमेरिका अब किसी के साथ नरमी नहीं बरतेगा।

इस घोषणा के तुरंत बाद अमेरिकी डॉलर की कीमत यूरो के मुकाबले गिर गई और अन्य वैश्विक मुद्राओं के मुकाबले भी इसमें गिरावट देखी गई। यह स्थिति बताती है कि बाजार में अनिश्चितता और चिंता किस हद तक बढ़ चुकी है।


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