
ग्लोबल ब्रोकरेज फर्म बर्नस्टीन की ताज़ा रिपोर्ट में यह साफ़ कहा गया है कि भारत की अर्थव्यवस्था में जो सुस्ती पिछले कुछ समय से दिख रही थी, वह अब खत्म हो चुकी है। आने वाले वित्तीय वर्ष यानी FY26 में भारत की GDP 6.5% की दर से बढ़ने की उम्मीद जताई गई है। इस भविष्यवाणी ने निवेशकों और बाजार विश्लेषकों के बीच एक नई उम्मीद जगा दी है।
वैश्विक अस्थिरता में भारत की मजबूती
बर्नस्टीन के अनुसार, दुनिया में चाहे जितनी भी अनिश्चितता हो—चाहे अमेरिका में मंदी की आशंका हो या व्यापार युद्ध जैसे हालात—भारत की रणनीतिक स्थिति इतनी मजबूत है कि वह इन जोखिमों का प्रभावी ढंग से सामना कर सकता है। खास बात यह है कि भारत की अर्थव्यवस्था ऐतिहासिक रूप से अमेरिकी इकोनॉमी से बहुत हद तक स्वतंत्र रही है। पिछली बार जब दुनिया में मंदी आई थी, तब भारत उससे अपेक्षाकृत जल्दी उबरने में कामयाब रहा था।
निफ्टी 50 का लक्ष्य 26,500 तक
भारतीय शेयर बाजार को लेकर भी बर्नस्टीन काफी आशावादी है। उनके अनुसार, NSE के प्रमुख इंडेक्स निफ्टी 50 के इस साल के अंत तक 26,500 के स्तर तक पहुंचने की संभावना है। हालांकि, उन्होंने यह भी आगाह किया है कि वैश्विक अस्थिरता के चलते बाजार में उतार-चढ़ाव बना रह सकता है। निवेशकों को सतर्क रहने की सलाह दी गई है, ताकि वे छोटे-मोटे झटकों से घबराकर कोई गलत निर्णय न लें।
अमेरिकी मंदी से भारत को अप्रत्यक्ष लाभ
अगर अमेरिका में मंदी आती है, तो इसका सीधा असर ग्लोबल कमोडिटी प्राइसेज पर पड़ेगा। बर्नस्टीन का मानना है कि कच्चे तेल, कॉपर, एल्यूमिनियम और स्टील जैसी जरूरी वस्तुओं की कीमतों में गिरावट आएगी। इसका लाभ भारत को मिलेगा क्योंकि भारत इन वस्तुओं का बड़ा आयातक है। इससे न सिर्फ आयात बिल में कटौती होगी, बल्कि महंगाई पर भी काबू पाया जा सकेगा।
मजबूत निवेश भावना और सकारात्मक आउटलुक
भारतीय इकॉनमी को लेकर घरेलू और विदेशी निवेशकों का भरोसा मजबूत बना हुआ है। भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद, मजबूत मैक्रोइकनॉमिक फंडामेंटल्स, और रुपये की स्थिरता जैसे फैक्टर बाजार को समर्थन दे रहे हैं। DII (घरेलू संस्थागत निवेशक) और FII (विदेशी संस्थागत निवेशक) की ओर से की जा रही मजबूत खरीदारी से बाजार में तेजी की संभावना और बढ़ जाती है।
बर्नस्टीन की रिपोर्ट भारत के लिए एक पॉजिटिव संकेत देती है और इस बात का प्रमाण है कि दुनिया भर की नजरें अब भारत की आर्थिक क्षमताओं और संभावनाओं पर टिकी हुई हैं।