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गुजरात के राजकोट के एक व्यक्ति ने उच्च न्यायालय में अग्रिम जमानत के लिए याचिका दाखिल की थी। उस पर आरोप था कि उसने फर्जी इनपुट टैक्स क्रेडिट प्राप्त किया। लेकिन अदालत की सुनवाई के दौरान कुछ ऐसा हुआ जिसने मामला पूरी तरह बदल दिया।

दरअसल, जब यह व्यक्ति अदालत की कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग में शामिल हुआ, तब उसने सिगरेट पी। यह एक गंभीर उल्लंघन था, क्योंकि ऑनलाइन सुनवाई के दौरान भी वही अनुशासन अपेक्षित होता है जैसा कि अदालत में शारीरिक रूप से उपस्थित होने पर होता है। इस अनुशासनहीनता पर न्यायालय ने गंभीर संज्ञान लिया और मामला अवमानना ​​पीठ को भेज दिया।

इस मामले की सुनवाई न्यायाधीश ए.एस. सुपेहिया और न्यायाधीश निशा एम. ठाकोर की खंडपीठ ने की। अदालत ने याचिकाकर्ता पर ₹2 लाख का जुर्माना लगाया और टिप्पणी की कि यदि वह व्यक्ति अदालत कक्ष में सिगरेट पीता तो उसे तुरंत गिरफ्तार कर लिया जाता। यह व्यवहार न्यायालय की गरिमा के खिलाफ था।

याचिकाकर्ता की ओर से उसके वकील ने सफाई दी कि उसका मुवक्किल मानसिक तनाव में था, उसे नशे की लत है और वह व्यक्तित्व विकार से भी ग्रस्त है। उसके अनुसार, याचिकाकर्ता को यह जानकारी नहीं थी कि वह लिंक कोर्ट की लाइव स्ट्रीमिंग के लिए है, जिसे यूट्यूब पर भी देखा जा सकता है।

इस दलील के बाद कोर्ट ने उसे कुछ राहत दी और जुर्माने की राशि को ₹50,000 कर दिया। साथ ही यह निर्देश दिया कि यह रकम दो हफ्ते के भीतर गुजरात उच्च न्यायालय विधिक सेवा प्राधिकरण में जमा कराई जाए।

यह पहली बार नहीं है जब कोर्ट की लाइव स्ट्रीमिंग के दौरान अशोभनीय आचरण सामने आया हो। इससे पहले भी कुछ मामलों में लोग अदालत की मर्यादा को भूल गए। एक व्यक्ति अपने शौचालय से सुनवाई में शामिल हुआ था, जबकि दूसरा अपने बिस्तर पर लेटा हुआ नजर आया था। इन मामलों में अदालत ने कड़ी कार्रवाई की – किसी पर दो लाख का जुर्माना लगाया गया और सामुदायिक सेवा का आदेश भी दिया गया।

एक खास मामले में अदालत ने आदेश दिया था कि जुर्माने की रकम का हिस्सा शिशु गृह में और शेष राशि विधिक सेवा प्राधिकरण में जमा की जाए। इससे यह स्पष्ट होता है कि न्यायालय केवल आर्थिक दंड ही नहीं देता बल्कि समाज के प्रति उत्तरदायित्व भी तय करता है।

यह घटनाएं एक स्पष्ट संदेश देती हैं – अदालत की कार्यवाही चाहे शारीरिक रूप से हो या वर्चुअल, उसमें अनुशासन, शिष्टाचार और सम्मान अनिवार्य हैं। नियमों का उल्लंघन करने वालों को कड़ी सजा दी जाएगी।

अगर कोई भी व्यक्ति हाई कोर्ट की लाइव स्ट्रीमिंग से जुड़ता है, तो उसे इस तरह से पेश आना चाहिए जैसे वह स्वयं अदालत कक्ष में मौजूद हो। यह न केवल न्याय की गरिमा के लिए जरूरी है, बल्कि यह नागरिकों की कानूनी जिम्मेदारी का भी हिस्सा है।


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