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Vastu tips : वास्तु शास्त्र में दिशाओं और स्थानों का विशेष महत्व होता है। जब भी कोई व्यक्ति नया घर बनवाता है, तो वह अक्सर वास्तु विशेषज्ञ की सलाह से ही नक्शा तैयार करवाता है। इसका कारण यह है कि सही दिशा, रंग और डिजाइन का ध्यान रखकर बनाए गए घर में न केवल सुख-शांति का वास होता है, बल्कि जीवन में समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा भी बनी रहती है।

घर का मुख्य द्वार वास्तु शास्त्र में सबसे अहम माना जाता है। यह सिर्फ एक प्रवेश स्थान नहीं होता, बल्कि घर की सभी ऊर्जाओं का स्रोत होता है। अगर यह द्वार गलत दिशा में हो या इसकी स्थिति वास्तु अनुसार न हो, तो यह पूरे परिवार के जीवन में तनाव और परेशानियों का कारण बन सकता है। आइए विस्तार से जानते हैं कि घर का मुख्य द्वार बनवाते समय किन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

1. मुख्य द्वार की दिशा: सही दिशा, सही ऊर्जा

घर का मुख्य द्वार उत्तर-पूर्व दिशा (ईशान कोण) की ओर होना सबसे शुभ माना जाता है। यह दिशा सूर्य की पहली किरणों का स्वागत करती है, जिससे घर में प्राकृतिक प्रकाश और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। यह दिशा आध्यात्मिक उन्नति और मानसिक शांति से भी जुड़ी हुई है।

वहीं दक्षिण और पश्चिम दिशा में मुख्य द्वार बनवाने से बचना चाहिए। इन दिशाओं से नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश अधिक होता है, जिससे घर में मानसिक तनाव, आर्थिक समस्याएं और पारिवारिक कलह की संभावना बढ़ जाती है।

अगर किसी कारणवश मुख्य द्वार इन दिशाओं में बनाना जरूरी हो, तो वास्तु दोष निवारण के उपाय जरूर अपनाएं, जैसे शुभ चिह्नों का प्रयोग, वास्तु पिरामिड या ऊर्जा बैलेंसर का इस्तेमाल।

2. द्वार की डिजाइन: संतुलन और सौंदर्य का मेल

मुख्य द्वार की बनावट और आकार भी घर की ऊर्जा पर गहरा असर डालते हैं। द्वार का डिजाइन ऐसा होना चाहिए जो न तो बहुत भारी हो और न ही बहुत हल्का। द्वार हमेशा दो पल्लों वाला होना चाहिए, जिससे आने-जाने में आसानी हो और ऊर्जा का संतुलन बना रहे।

बहुत बड़ा या बहुत छोटा दरवाजा घर के भीतर असंतुलन पैदा कर सकता है। इससे न केवल वास्तु दोष उत्पन्न होते हैं, बल्कि घर के लोगों की सोच और जीवन में भी असंतुलन देखने को मिलता है।

द्वार की ऊंचाई और चौड़ाई भी संतुलित होनी चाहिए। इसका आदर्श अनुपात वास्तु विशेषज्ञ की सलाह से तय किया जाना चाहिए।

3. द्वार की सफाई और सजावट: स्वागत करें सकारात्मकता का

घर का द्वार साफ-सुथरा और सुसज्जित होना बेहद जरूरी है। यह घर की पहली छवि प्रस्तुत करता है और बाहर से आने वाली ऊर्जा को प्रभावित करता है। गंदा या टूटा-फूटा दरवाजा नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है, जिससे घर के वातावरण में तनाव और अशांति फैल सकती है।

मुख्य द्वार पर शुभ चिन्ह जैसे स्वस्तिक, ॐ, या मंगल कलश लगाने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है। इसके अलावा द्वार के दोनों ओर तुलसी का पौधा या शुभ वंदनवार भी लगाई जा सकती है, जो नकारात्मक ऊर्जा को रोकती है।

द्वार पर हल्की रौशनी का इंतजाम करें और रात को भी यह स्थान प्रकाशित रहे, ताकि अंधकार और नकारात्मकता पास न फटक सके।

4. द्वार का रंग: रंगों में छिपी होती है ऊर्जा की ताकत

रंगों का प्रभाव हमारे मन और घर के वातावरण पर बहुत गहरा होता है। खासकर मुख्य द्वार का रंग वास्तु के अनुसार ही चुना जाना चाहिए। सही रंग न केवल घर की सुंदरता बढ़ाता है, बल्कि जीवन में सुख-शांति और समृद्धि भी लाता है।

वास्तु के अनुसार क्रीम, हल्का पीला, हल्का नीला, हरा या सफेद रंग मुख्य द्वार के लिए शुभ माने जाते हैं। ये रंग सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करते हैं और घर के भीतर एक शांतिपूर्ण माहौल बनाते हैं।

गहरे या डार्क रंगों जैसे काला, भूरा या बहुत तेज लाल रंग से बचना चाहिए, क्योंकि ये रंग तनाव, क्रोध और नकारात्मकता को बढ़ावा दे सकते हैं।

5. मुख्य द्वार का स्थान और ऊंचाई: ऊर्जा का सहज प्रवाह

मुख्य द्वार की स्थिति भी वास्तु के अनुसार होनी चाहिए। यह घर के केंद्र से थोड़ा हटकर, दाएं या बाएं किनारे की ओर हो तो बेहतर होता है। इससे घर के भीतर ऊर्जा का प्रवाह निर्बाध होता है।

मुख्य द्वार हमेशा जमीन से थोड़ी ऊंचाई पर होना चाहिए। इससे घर में आने वाली ऊर्जा नीचे से ऊपर की ओर जाती है, जो कि एक शुभ संकेत है। सीढ़ियां यदि हैं तो वे हमेशा सम संख्या में हों, क्योंकि यह वास्तु में सौभाग्य का प्रतीक मानी जाती हैं।

द्वार के सामने कोई भी अवरोधक वस्तु जैसे खंभा, पेड़ या दीवार नहीं होनी चाहिए। यह ऊर्जा के प्रवाह को रोकता है और वास्तु दोष उत्पन्न करता है।


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