
Washington, US : अमेरिका की राजनीति में एक बड़ा मोड़ तब आया जब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 25 मार्च को एक नए कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए। यह आदेश अमेरिका की चुनावी व्यवस्था में गहरा बदलाव लेकर आया है। अब देश में फेडरल यानी राष्ट्रीय स्तर पर होने वाले चुनावों में वोट देने के लिए नागरिकों को अपनी नागरिकता का दस्तावेजी सबूत देना अनिवार्य होगा। सीधे शब्दों में कहें तो अब सिर्फ खुद को "नागरिक" बताना काफी नहीं होगा—आपको अमेरिकी पासपोर्ट, जन्म प्रमाणपत्र या ऐसा ही कोई आधिकारिक दस्तावेज दिखाना होगा, तभी आप वोटिंग के लिए रजिस्टर हो सकेंगे।
ट्रंप प्रशासन ने भारत और ब्राजील जैसे देशों का उदाहरण देते हुए कहा कि ये देश चुनावी सुरक्षा के बुनियादी और जरूरी कदमों को अपनाने में अमेरिका से कहीं आगे हैं। आदेश में यह भी बताया गया कि अमेरिका, जो खुद को लोकतंत्र का सिरमौर मानता है, अभी भी अपनी चुनावी व्यवस्था को मज़बूत करने में पिछड़ रहा है।
भारत से सीखने की बात, लेकिन खुद अमेरिका पीछे क्यों?
आदेश में साफ कहा गया कि भारत और ब्राजील जैसे देश अपने मतदाता पहचान को बायोमेट्रिक डेटा से जोड़ रहे हैं, जबकि अमेरिका अब तक सेल्फ-अटेस्टेड नागरिकता पर भरोसा करता रहा है। यानी वहां कोई भी व्यक्ति खुद को नागरिक बताकर फॉर्म भर सकता था और वोटिंग के लिए रजिस्टर हो सकता था। लेकिन अब ये सिस्टम बदलेगा।
सिर्फ भारत ही नहीं, जर्मनी और कनाडा जैसे विकसित देश भी पेपर बैलेट का उपयोग करते हैं ताकि पारदर्शिता बनी रहे। वहीं अमेरिका में कई ऐसे वोटिंग सिस्टम हैं जो कागजी सबूत के बिना, पूरी तरह इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से चलते हैं—जिनमें कई बार चेन-ऑफ-कस्टडी की मूलभूत कमी देखी जाती है।
मेल वोटिंग पर भी लगेगी लगाम
डेनमार्क और स्वीडन का उदाहरण देते हुए ट्रंप प्रशासन ने कहा कि वे मेल वोटिंग को केवल सीमित परिस्थितियों में स्वीकार करते हैं। यानी अगर कोई व्यक्ति व्यक्तिगत रूप से वोट डालने में असमर्थ है तभी उसे मेल वोटिंग की सुविधा दी जाती है। इसके विपरीत, अमेरिका में मेल वोटिंग आम बात हो गई है और कई मामलों में बिना पोस्टमार्क या देरी से आए मतपत्र भी गिने जाते हैं।
इस आदेश के अनुसार अब अमेरिका में इस व्यवस्था पर लगाम कसी जाएगी। वोट तभी मान्य होगा जब वह चुनाव के दिन तक डाला और प्राप्त किया गया हो। अन्यथा, वह वोट गिनती में शामिल नहीं किया जाएगा।
ट्रंप का स्पष्ट संदेश: निष्पक्ष चुनाव लोकतंत्र की आत्मा हैं
जनवरी में कमला हैरिस को हराकर राष्ट्रपति पद पर वापसी करने वाले डोनाल्ड ट्रंप ने अपने इस आदेश को लोकतंत्र की रक्षा से जोड़ा है। उन्होंने कहा, “धोखाधड़ी, त्रुटियों या संदेह से मुक्त, निष्पक्ष और ईमानदार चुनाव हमारे संवैधानिक गणतंत्र को बनाए रखने के लिए ज़रूरी हैं।”
उनका यह भी कहना है कि अमेरिकी नागरिकों को यह अधिकार है कि उनका वोट बिना किसी गैरकानूनी हस्तक्षेप के ठीक ढंग से गिना जाए, ताकि असली विजेता का सही निर्धारण हो सके।
कौन-कौन से बड़े बदलाव होंगे अब चुनाव में?
नागरिकता प्रमाण देना होगा जरूरी: अब वोटर रजिस्ट्रेशन फॉर्म में नागरिकता का दस्तावेज लगाना अनिवार्य होगा। यह पासपोर्ट, जन्म प्रमाणपत्र या अन्य प्रमाणिक दस्तावेज हो सकते हैं।
वोटर लिस्ट की निगरानी होगी सख्त: सभी राज्यों को अपनी मतदाता सूचियों की समीक्षा के लिए होमलैंड सिक्योरिटी विभाग और सरकारी दक्षता विभाग (DOGE) को डेटा सौंपना होगा।
मेल वोटिंग की सीमा तय होगी: अब केवल चुनाव के दिन तक प्राप्त वोट ही मान्य होंगे, पोस्टमार्क की तारीख से फर्क नहीं पड़ेगा।
फंडिंग होगी नियमों से जुड़ी: जो राज्य इन नए नियमों का पालन नहीं करेंगे, उन्हें फेडरल फंडिंग नहीं दी जाएगी।
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों के दिशा-निर्देश बदले जाएंगे: चुनाव सहायता आयोग को वोटिंग मशीनों के लिए नए गाइडलाइंस बनाने को कहा गया है। खासकर उन मशीनों के लिए जो बारकोड या QR कोड के आधार पर वोट गिनती करती हैं।
विदेशी दखल पर रोक: विदेशी नागरिक अब अमेरिका के चुनावों में किसी भी तरह का योगदान या चंदा नहीं दे पाएंगे।