img

Ketu impact on kundali  : कुंडली का आठवां भाव, जिसे ज्योतिष में गूढ़ रहस्यों, मोक्ष, आध्यात्म, और तांत्रिक विद्या से जोड़कर देखा जाता है, जब उसमें केतु का स्थान होता है, तो यह एक अत्यंत रहस्यमयी और प्रभावशाली स्थिति बन जाती है। लेकिन क्या यह स्थिति हमेशा अशुभ होती है? क्या इसके कुछ छुपे हुए फायदे भी हैं? आइए इस लेख में इसे इंसानी भाषा में, सरल ढंग से और गहराई से समझते हैं।

केतु का आठवें भाव में प्रभाव: क्या होता है खास?

आठवां भाव वैसे ही रहस्यमय माना जाता है – ये मृत्यु, पुनर्जन्म, आध्यात्मिक जागरूकता, अचानक परिवर्तन और स्वास्थ्य संबंधी विषयों से जुड़ा होता है। अब इसमें जब केतु जैसे छायाग्रही ग्रह का प्रवेश होता है, तो सोचिए कैसा गूढ़ मिश्रण तैयार होता है। केतु वैसे भी अलगाव, त्याग, पूर्वजन्म के कर्म और रहस्यमय ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है। इस स्थिति में जातक आमतौर पर अंदर से बहुत गंभीर हो जाता है, उसकी सोच गहरी होती है, और वो चीजों को सतही तौर पर नहीं लेता।

हालाँकि, ज़रूरी नहीं कि ये प्रभाव हमेशा सकारात्मक हो। कभी-कभी ये मानसिक और शारीरिक संघर्ष भी दे सकता है, खासकर जब केतु अशुभ ग्रहों के साथ जुड़ा हो या नीच स्थान में हो। जातक का जीवन कभी-कभी एक रहस्य की तरह लग सकता है – बाहर से सब सामान्य, लेकिन भीतर एक गहरी हलचल।

शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रभाव: कुछ सावधानियाँ जरूरी हैं

आठवें भाव में केतु के प्रभाव से शरीर पर खास असर देखने को मिलता है। यह भाव वैसे भी स्वास्थ्य, दुर्घटनाओं और रहस्यमय बीमारियों से जुड़ा होता है, और जब केतु यहां बैठता है, तो इन मामलों में और अधिक संवेदनशीलता आ जाती है।

डायबिटीज और मूत्र संबंधी रोग: यह स्थिति खासतौर पर मधुमेह (Diabetes) या यूरिन से जुड़ी समस्याएं जैसे संक्रमण, बार-बार पेशाब आना या गुर्दे की परेशानी को जन्म दे सकती है।

चोट और दुर्घटनाएं: जातक को बार-बार चोट लगने की संभावना रहती है। ये चोटें छोटी भी हो सकती हैं और कभी-कभी बड़ी भी, खासकर वाहन चलाते समय या खेलकूद में।

जहरीले जीवों से खतरा: केतु का संबंध रहस्यमय चीजों से है, इसलिए ऐसे जातकों को सांप, बिच्छू या अन्य जहरीले जीवों से खतरा बना रहता है।

इसलिए अगर आपकी कुंडली में केतु आठवें भाव में है, तो स्वास्थ्य के मामले में आपको अतिरिक्त सतर्क रहना चाहिए – खासकर अचानक होने वाली समस्याओं पर।

केतु के सकारात्मक प्रभाव: फायदे भी कम नहीं हैं

अब बात करते हैं अच्छी बातों की – क्योंकि हर ग्रह चाहे वो राहु हो या केतु, उसके कुछ फायदे भी होते हैं, बशर्ते वो सही जगह और सही ग्रहों के साथ हो।

आर्थिक फायदा: आश्चर्यचकित करने वाली बात यह है कि आठवें भाव में केतु होने पर सरकार या किसी संस्थान से अचानक धन लाभ हो सकता है। ये आमदनी अचानक और अप्रत्याशित रूप से आती है।

खेलों में रुचि: जातक का झुकाव शारीरिक फिटनेस और खेलकूद की ओर हो सकता है। यदि अन्य ग्रहों का साथ मिले तो जातक किसी खेल में अच्छा नाम कमा सकता है।

गहराई से सोचने वाला: केतु का प्रभाव जातक को सामान्य लोगों से अलग बना देता है। वह किसी भी विषय पर बहुत गहराई से सोचने और विश्लेषण करने वाला बनता है।

और सबसे खास बात ये कि अगर केतु शुभ ग्रहों जैसे बृहस्पति या शुक्र के साथ हो, तो वो अपनी नकारात्मकता को काफी हद तक कम कर देता है और जातक को आध्यात्मिक और आर्थिक रूप से आगे बढ़ने में मदद करता है।

केतु के नकारात्मक प्रभाव: जब बात बिगड़ने लगे

अब अगर बात करें आठवें भाव में केतु के अशुभ प्रभावों की, तो यहां कुछ गंभीर परेशानियां देखने को मिल सकती हैं। केतु जब कमजोर स्थिति में होता है, या अशुभ ग्रहों से पीड़ित होता है, तो ये स्थितियां सामने आ सकती हैं:

गलत संगति: जातक का झुकाव गलत लोगों की ओर हो सकता है। वह ऐसे लोगों के साथ समय बर्बाद कर सकता है जो उसके जीवन को नकारात्मक दिशा में ले जाते हैं।

धोखा और लालच: केतु का प्रभाव व्यक्ति को लोभी और चालाक बना सकता है। वह दूसरों का फायदा उठाने वाला हो सकता है, बिना किसी पश्चाताप के।

दोस्ती में दरार: अच्छे दोस्तों से दूरियां बनने लगती हैं। जातक को अकेलापन महसूस हो सकता है या फिर वो खुद ही अलगाव पसंद करने लगता है।

वाहन संबंधी परेशानी: वाहन दुर्घटनाएं, वाहन की चोरी या खराबी जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं।

केतु कभी-कभी व्यक्ति के अंदर अजीब तरह का डर भी पैदा करता है – जैसे बिना वजह डर लगना, किसी के खोने का डर, या फिर मृत्यु का डर।

वैवाहिक जीवन में उतार-चढ़ाव: रिश्तों में रहस्यमय दरार

केतु का प्रभाव विवाह पर भी पड़ता है, खासकर जब वह आठवें भाव में हो। चूंकि यह भाव जीवन साथी के परिवार और उसके स्वास्थ्य से भी जुड़ा होता है, इसलिए इसके कई असर सामने आ सकते हैं:

जीवनसाथी का स्वास्थ्य: पत्नी या पति को बार-बार स्वास्थ्य समस्याओं से जूझना पड़ सकता है। कभी-कभी ये समस्याएं समझ में नहीं आतीं, क्योंकि वे गूढ़ या छिपी होती हैं।

रिश्तों में दूरी: वैवाहिक जीवन में भावनात्मक दूरी आ सकती है। पार्टनर के बीच संवाद की कमी हो सकती है, या फिर शक जैसी चीजें पनप सकती हैं।

अचानक समस्याएं: विवाह में कोई अचानक समस्या आ सकती है – जैसे तलाक की बात या अलगाव, बिना किसी बड़ी वजह के।

इसलिए ऐसे जातकों को वैवाहिक जीवन में विशेष सावधानी और धैर्य से काम लेना चाहिए।