Chamarajanagar: माइक्रो फाइनेंस कंपनियों के उत्पीड़न का काला सच धीरे-धीरे सामने आ रहा है। लोन लेकर घर बनाने का सपना देखने वाले कई परिवार आज इस व्यवस्था की वजह से सड़कों पर आ गए हैं। कामगेरे और सांथेमरहल्ली जैसे गांवों में ऐसी घटनाएं बढ़ती जा रही हैं, जहां परिवारों को उनके ही घरों से बेदखल कर दिया गया है।
घर पर कब्जा और परिवार की बदहाली
सांथेमरहल्ली गांव के रहने वाले राजेश के परिवार ने एक बेहतर जीवन के लिए 15 लाख रुपये का होम लोन लिया था। शुरुआत में किस्तें समय पर चुकाईं, लेकिन आर्थिक तंगी के कारण लोन चुकाने में देरी हो गई। नतीजा यह हुआ कि फाइनेंस कंपनी ने उनका घर जब्त कर लिया। अब हालात ऐसे हैं कि राजेश का परिवार सड़क पर आ गया है और अपने ही घर के आंगन में रहने को मजबूर है।
ब्याज के चक्रव्यूह में फंसा परिवार
ऐसी ही एक दर्दनाक घटना कामगेरे गांव में चेलुवाराजू के परिवार के साथ घटी। चेलुवाराजू ने अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए 10 लाख रुपये का लोन लिया था। उन्होंने समय-समय पर किस्तें चुकाईं और अब तक 11.50 लाख रुपये चुका चुके हैं। लेकिन फाइनेंस कंपनी ने ब्याज पर ब्याज जोड़कर कुल 14 लाख रुपये की मांग कर दी। जब यह राशि समय पर नहीं दी गई, तो कंपनी ने उनका घर जब्त कर लिया।
एक साल से रिश्तेदारों के घर में शरण
चेलुवाराजू का परिवार पिछले एक साल से अपने रिश्तेदारों के घर में शरण लेने को मजबूर है। उनका कहना है कि फाइनेंस कंपनी का रवैया बेहद अमानवीय है। उन्होंने लोन की रकम का अधिकांश हिस्सा चुका दिया है, लेकिन कंपनियां ब्याज बढ़ाकर उनकी स्थिति को और भी बदतर बना रही हैं।
जरूरत है कड़े कदम उठाने की
माइक्रो फाइनेंस कंपनियों की इस मनमानी के खिलाफ सरकार और प्रशासन को सख्त कदम उठाने की जरूरत है। गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों को आर्थिक मदद के नाम पर ऐसे चक्रव्यूह में फंसाना बेहद निंदनीय है।
चामराजनगर में सामने आई ये घटनाएं केवल एक उदाहरण हैं। देशभर में ऐसी कई कहानियां छिपी हुई हैं, जहां लोगों को अपने सपनों का घर छोड़कर सड़कों पर आना पड़ा है। इससे न केवल उनकी आर्थिक स्थिति खराब होती है, बल्कि उनका मानसिक और भावनात्मक संतुलन भी बिगड़ जाता है।