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Chaitra Navratri 2025: आज, रविवार 30 मार्च से चैत्र नवरात्रि का शुभारंभ हो रहा है। हिंदू धर्म में यह पर्व विशेष महत्व रखता है। नौ दिनों तक देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा होती है और पहले दिन मां दुर्गा के पहले स्वरूप, मां शैलपुत्री की आराधना की जाती है। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण उन्हें 'शैलपुत्री' कहा जाता है। उनका वाहन वृषभ है, एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे में कमल का पुष्प लिए मां शैलपुत्री शक्ति, साहस और शुद्धता की प्रतीक मानी जाती हैं। ऐसी मान्यता है कि जो भक्त पहले दिन श्रद्धा से मां शैलपुत्री की पूजा करते हैं, उन्हें दृढ़ इच्छाशक्ति, मानसिक शक्ति और दिव्य आशीर्वाद प्राप्त होता है। आइए विस्तार से जानते हैं उनकी पूजा से जुड़ी हर आवश्यक जानकारी।

मां शैलपुत्री की पूजा विधि

सुबह स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें और पूजा स्थल को शुद्ध करें। पूजा का शुभ समय सुबह 6:13 बजे से 10:22 बजे तक है, और अभिजीत मुहूर्त 12:01 बजे से दोपहर 12:50 तक रहेगा।

पूजा की शुरुआत कलश स्थापना से करें। एक मिट्टी के पात्र में सप्तधान्य (सात प्रकार के अनाज) बोएं और उसके ऊपर जल से भरा कलश रखें।

कलश में गंगाजल, सुपारी, सिक्का और आम के पत्ते डालें, और ऊपर नारियल रखें।

अब मां शैलपुत्री की प्रतिमा या चित्र को पूजा स्थल पर रखें। उन्हें कुमकुम, अक्षत, सफेद फूल और सफेद वस्त्र अर्पित करें।

इसके बाद मां के मंत्र का जाप करें –
"ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॐ शैलपुत्री देव्यै नमः"
साथ ही दुर्गा सप्तशती या दुर्गा चालीसा का पाठ करना भी फलदायी माना जाता है।

मां शैलपुत्री को अर्पित किया जाने वाला भोग

मां को प्रसन्न करने के लिए सफेद रंग के भोग अर्पित करने की परंपरा है। इसमें गाय के घी से बनी खीर या सफेद मिठाई सर्वोत्तम मानी जाती है। पूजा के अंत में मां की आरती करें और सभी परिजनों में प्रसाद बांटें।

मां शैलपुत्री का बीज मंत्र

पूजा में इस मंत्र का जाप अवश्य करें:

"या देवी सर्वभूतेषु मां शैलपुत्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।"

यह मंत्र न केवल आध्यात्मिक ऊर्जा देता है बल्कि मन की शुद्धता और साधना में एकाग्रता भी बढ़ाता है।

मां शैलपुत्री का शुभ रंग

मां शैलपुत्री को सफेद रंग अत्यंत प्रिय है, जो शांति और पवित्रता का प्रतीक है। नवरात्रि के पहले दिन सफेद वस्त्र पहनना और सफेद फूलों से मां की पूजा करना बहुत शुभ माना जाता है। यह रंग साधक की आंतरिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा को भी प्रबल करता है।

मां शैलपुत्री की पौराणिक कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्रजापति दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया था जिसमें उन्होंने सभी देवताओं को आमंत्रित किया लेकिन जानबूझकर अपने दामाद भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। यह सुनकर सती बहुत आहत हुईं और बिना बुलाए यज्ञ स्थल पर पहुंचीं। वहां अपने पति का अपमान होता देख उन्होंने यज्ञ अग्नि में आत्मदाह कर लिया।

इस दुखद घटना से भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गए और उन्होंने दक्ष के यज्ञ को ध्वस्त कर दिया। सती ने अपने अगले जन्म में पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया और 'शैलपुत्री' के नाम से प्रसिद्ध हुईं। वर्तमान समय में काशी खंड के अलईपुर क्षेत्र में स्थित मढ़िया घाट को मां शैलपुत्री का पावन स्थल माना जाता है।