
भारत में देवी माँ के 51 शक्तिपीठों का विशेष महत्व है, लेकिन कुछ ऐसे भी स्थान हैं जिन्हें आदि शक्ति पीठ कहा जाता है – इनका महत्व इतना गहरा है कि यहां दर्शन करने से 51 शक्तिपीठों के बराबर पुण्य और आशीर्वाद प्राप्त होते हैं। आइए, इन्हीं 4 प्रमुख आदि शक्ति पीठों की मान्यता, विशेषता और आध्यात्मिक ऊर्जा के बारे में विस्तार से जानते हैं:
1. कामाख्या मंदिर, गुवाहाटी – शक्ति का रहस्यमय स्रोत
कामाख्या मंदिर को भारत के सबसे रहस्यमयी और शक्तिशाली मंदिरों में से एक माना जाता है। असम की राजधानी गुवाहाटी से करीब 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नीलांचल पहाड़ी पर यह मंदिर विराजमान है। यहां देवी सती के योनि अंग की पूजा की जाती है, और यह इसे तंत्र साधना का सबसे बड़ा केंद्र बनाता है।
इस मंदिर की खास बात यह है कि यहां देवी की कोई मूर्ति नहीं है। एक प्राकृतिक गुफा के भीतर एक चट्टान है जिसे देवी सती के अंग का प्रतीक माना गया है, और इसी पर निरंतर जल बहता रहता है। मंदिर में साल में एक बार 'अंबुवाची मेला' लगता है, जो देवी के मासिक धर्म के दौरान होता है। इस दौरान मंदिर के पट तीन दिन के लिए बंद रहते हैं और चौथे दिन विशेष पूजा के साथ खुलते हैं।
माना जाता है कि इस शक्तिपीठ में केवल दर्शन करने मात्र से ही सारे पाप कट जाते हैं और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह शुरू होता है। साधकों और तांत्रिकों के लिए यह मंदिर सिद्धियों का सबसे बड़ा केंद्र माना जाता है।
2. कालीघाट मंदिर, कोलकाता – देवी काली की अपार ऊर्जा का केंद्र
पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में स्थित कालीघाट मंदिर, देवी काली को समर्पित है। यह मंदिर न केवल बंगाल का धार्मिक केंद्र है, बल्कि भारत के सबसे प्रमुख आदि शक्ति पीठों में से भी एक है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, जब भगवान शिव देवी सती के पार्थिव शरीर को लेकर तांडव कर रहे थे, तब भगवान विष्णु ने उनके शरीर के अंगों को पृथ्वी पर गिराकर उन्हें शांत किया। इसी दौरान माता सती के दाहिने पैर की चार अंगुलियां इस स्थान पर गिरी थीं।
इस मंदिर में भक्तों की आस्था इतनी प्रबल है कि नवरात्र या किसी भी विशेष पर्व पर यहां दर्शन के लिए लाखों की भीड़ उमड़ पड़ती है। माता के दर्शन मात्र से भक्तों को अपार मानसिक शांति और आत्मबल की प्राप्ति होती है।
कालीघाट मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यहां पूजा बहुत ही विशेष विधि से की जाती है, जिसमें बलिदान, तांत्रिक अनुष्ठान, और मां के रूप में 'काली' की पूरी शक्ति का अनुभव होता है।
3. विमला देवी मंदिर, पुरी – जगन्नाथ जी की माता का दिव्य स्थान
पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर परिसर के भीतर ही स्थापित विमला देवी मंदिर भी एक आदि शक्ति पीठ है। यह मंदिर इस बात का साक्ष्य है कि शक्ति और विष्णु के बीच कितना गहरा संबंध है। यहां मान्यता है कि देवी सती का पैर इस स्थान पर गिरा था।
इस मंदिर की एक खास परंपरा है – जगन्नाथ मंदिर के पट खुलने से पहले विमला देवी के पट खोले जाते हैं और रात को पहले जगन्नाथ जी के पट बंद होते हैं, उसके बाद देवी विमला के। यह परंपरा इस बात को दर्शाती है कि मां विमला को जगन्नाथ जी की माता माना जाता है।
यह स्थान विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है जो भक्ति में शक्ति और विष्णु दोनों की एकता को मानते हैं। यहां आने से एक गहरा आध्यात्मिक संतुलन महसूस होता है, मानो मां की ममता और भगवान की कृपा एक साथ मिल गई हो।
4. तारा तारिणी मंदिर, ओडिशा – तंत्र साधना का प्राचीन पीठ
ओडिशा के गंजाम जिले में ऋषिकुल्या नदी के किनारे पुण्यगिरि पर्वत पर स्थित है तारा तारिणी मंदिर। यह मंदिर पुरी से लगभग 178 किलोमीटर दूर है और इसे तंत्र साधना का प्रमुख केंद्र माना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, यहां देवी सती के स्तन अंग गिरे थे, जो मातृत्व, पोषण और शक्ति का प्रतीक हैं।
यह मंदिर दो बहनों के रूप में पूजी जाने वाली देवी तारा और तारिणी को समर्पित है। यहां हर मंगलवार को विशेष पूजा होती है और चैत्र नवरात्र में तो यहां श्रद्धालुओं की अपार भीड़ उमड़ती है।
यह स्थान उन भक्तों के लिए विशेष है जो तांत्रिक साधना और माता की कृपा से मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक शांति प्राप्त करना चाहते हैं। देवी के इस रूप में मातृत्व की ऊर्जाएं इतनी प्रबल हैं कि यहां दर्शन मात्र से ही कई मानसिक रोग और जीवन की बाधाएं दूर हो जाती हैं।
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