img

Dharavi Redevelopment Project : अडानी ग्रुप को सुप्रीम कोर्ट से एक महत्वपूर्ण राहत मिली है। शीर्ष अदालत ने मुंबई के धारावी पुनर्विकास परियोजना पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। हालांकि, अदालत ने अडानी ग्रुप के सामने कुछ शर्तें रखी हैं, जिनका पालन करना अनिवार्य होगा। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अडानी ग्रुप को दिया गया यह प्रोजेक्ट अदालती आदेशों के अधीन रहेगा। यह फैसला सेशेल्स की सेकलिंक ग्रुप द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई के दौरान आया, जिसमें परियोजना के आवंटन को लेकर सवाल उठाए गए थे।

सेकलिंक ग्रुप के आरोप और याचिका

सेकलिंक ग्रुप ने आरोप लगाया कि धारावी पुनर्विकास परियोजना का कॉन्ट्रैक्ट अडानी ग्रुप को देने की प्रक्रिया में अनियमितताएं हुई हैं। उनका दावा है कि इस ठेके को अडानी ग्रुप के पक्ष में करने के लिए टेंडर की शर्तों में बदलाव किया गया।

याचिका में कहा गया कि मूल रूप से अडानी प्रॉपर्टीज ने इस प्रोजेक्ट के लिए 5,069 करोड़ रुपये की बोली लगाई थी, जबकि सेकलिंक ग्रुप ने 7,200 करोड़ रुपये की बोली लगाई थी और यह बढ़ाकर 8,640 करोड़ रुपये तक करने को भी तैयार था। इसके बावजूद, सेकलिंक को ठेके की प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया, जो कि अनुचित था।

कोर्ट की प्रतिक्रिया और राज्य सरकार से जवाब तलब

सेकलिंक ग्रुप ने 2018 में बड़ी राशि के साथ सबसे ऊंची बोली लगाई थी, लेकिन महाराष्ट्र सरकार ने बाद में इस टेंडर को रद्द कर दिया। इसके बाद 2022 में नए टेंडर जारी किए गए, जिसमें अडानी ग्रुप को यह परियोजना मिली।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर राज्य सरकार से जवाब तलब किया कि क्या टेंडर को रद्द करने और सेकलिंक को बाहर करने के लिए शर्तों में हेरफेर किया गया था? अदालत ने यह भी पूछा कि क्या राज्य सरकार टेंडर को रद्द करने की कानूनी हकदार थी?

अडानी ग्रुप का पक्ष

अडानी ग्रुप ने सुप्रीम कोर्ट में यह दलील दी कि धारावी पुनर्विकास परियोजना का काम पहले ही शुरू हो चुका है और इस पर रोक लगाने से विकास कार्यों में देरी होगी। इस पर अदालत ने परियोजना को रोकने से इनकार कर दिया लेकिन अडानी ग्रुप को कुछ शर्तों का पालन करने का निर्देश दिया।

कोर्ट के फैसले की मुख्य शर्तें

  • सभी वित्तीय लेन-देन के लिए एक एस्क्रो अकाउंट
    सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि अडानी ग्रुप को इस परियोजना से जुड़े सभी भुगतान एक सिंगल एस्क्रो अकाउंट में करने होंगे। इसमें सभी इनवॉयसेस को ट्रैक किया जाएगा।
  • वित्तीय पारदर्शिता सुनिश्चित करना
    अदालत ने कहा कि यदि भविष्य में अडानी ग्रुप के खिलाफ कोई फैसला आता है या परियोजना को अवैध माना जाता है, तो वित्तीय लेन-देन को आसानी से ट्रैक किया जा सके और जरूरत पड़ने पर इसे रद्द किया जा सके।

बॉम्बे हाई कोर्ट में भी जा चुका है मामला

इस मामले में सेकलिंक ग्रुप ने सबसे पहले बॉम्बे हाई कोर्ट का रुख किया था। लेकिन, दिसंबर 2024 में हाई कोर्ट ने अडानी ग्रुप के पक्ष में फैसला सुनाते हुए परियोजना के आवंटन को सही ठहराया। इसके बाद, सेकलिंक ग्रुप ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी, जहां अब भी मामले की सुनवाई जारी है।

टेंडर प्रक्रिया में विवाद और आगे की राह

2018 में सेकलिंक ग्रुप ने 7,200 करोड़ रुपये की बोली के साथ सबसे बड़ी बोली लगाई थी, लेकिन महाराष्ट्र सरकार ने टेंडर को रद्द कर दिया। इसके बाद 2022 में नई शर्तों के साथ नया टेंडर जारी किया गया, जिसमें अडानी ग्रुप की कंपनी अडानी प्रॉपर्टीज ने 5,069 करोड़ रुपये की बोली लगाकर यह ठेका हासिल किया।

अब सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में इस परियोजना पर काम जारी रहेगा, लेकिन यह स्पष्ट है कि मामला अभी पूरी तरह से समाप्त नहीं हुआ है। अदालत का अंतिम निर्णय इस परियोजना के भविष्य को तय करेगा।