
अमेरिका ने रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध को समाप्त करने के प्रयासों से पीछे हटने के संकेत दिए हैं। एक ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने शुक्रवार को यह स्पष्ट किया कि जब तक इस बात के ठोस संकेत नहीं मिलते कि दोनों पक्ष किसी समझौते पर पहुँच सकते हैं, तब तक अमेरिका जल्द ही शांति वार्ता की कोशिशों को रोक देगा।
पेरिस में यूरोपीय और यूक्रेनी नेताओं के साथ बैठक के बाद उन्होंने यह बयान दिया। रुबियो ने कहा कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी अब तक इस संघर्ष को समाप्त करने के लिए सक्रिय हैं, लेकिन उनके सामने वैश्विक स्तर पर कई अन्य प्राथमिकताएं भी हैं। ऐसे में अगर रूस और यूक्रेन की तरफ से किसी प्रकार की सकारात्मक पहल नहीं दिखती, तो अमेरिका इन प्रयासों से हाथ पीछे खींचने को तैयार है।
हाल ही में हुई एक भयावह घटना ने इस पूरे मसले को और भी संवेदनशील बना दिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने उत्तर-पूर्वी यूक्रेन के सुमी शहर पर रूस द्वारा किए गए बैलिस्टिक मिसाइल हमले को "गंभीर भूल" बताया था। इस हमले में कम से कम 34 लोगों की मौत हुई और 100 से अधिक लोग घायल हुए। जानकारी के अनुसार, रविवार सुबह 10:15 बजे (स्थानीय समय) दो मिसाइलें शहर के मध्य हिस्से में गिरीं, जब लोग चर्च की ओर जा रहे थे। हमले का निशाना बना शहर का मुख्य बाज़ार क्षेत्र, जहां एक मिसाइल यात्रियों से भरी ट्रॉली बस पर भी गिरी।
इस भयावह हमले के बाद सामने आए दृश्य बेहद दर्दनाक थे—सड़कों पर बिखरे शव, जलती हुई गाड़ियाँ और खून से सने घायल लोगों को बचाव दलों द्वारा अस्पताल ले जाते हुए देखा गया।
इस घटना के बाद राष्ट्रपति ट्रंप ने न सिर्फ हमले की आलोचना की बल्कि रूस पर सीजफायर समझौते में बाधा डालने का भी आरोप लगाया। उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि अगर रूस ने शांति प्रयासों में अड़चनें पैदा कीं, तो अमेरिका रूसी तेल पर 25 से 50 प्रतिशत तक अतिरिक्त टैरिफ लगा सकता है। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, यह प्रतिक्रिया उस समय सामने आई जब रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की के नेतृत्व पर सवाल उठाए। ट्रंप इस टिप्पणी से नाराज हो गए और इसे वार्ता की दिशा में गलत कदम बताया।
इस सबके बीच रूस-यूक्रेन युद्ध का समाधान अब और भी कठिन होता नजर आ रहा है। अमेरिका की मध्यस्थता से पीछे हटने की चेतावनी से यह संकेत मिल रहा है कि अगर हालात जल्द नहीं सुधरे, तो अंतरराष्ट्रीय समुदाय की उम्मीदों पर भी पानी फिर सकता है।